पशु तनाव, मवेशी और भैंस को बांधना
प्राकृतिक भौतिक और पर्यावरणीय परिस्थितियों में कोई भी परिवर्तन जो मवेशियों और भैंसों में शरीर क्रिया विज्ञान, उत्पादक और प्रजनन कार्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है, उसे तनाव कहा जा सकता है। यदि पशु बंधे नहीं हैं और अपने बाड़ों में मुक्त आवाजाही की अनुमति हो तो सभी प्रकार के पशुधन अपने प्राकृतिक आवास के तहत सहज महसूस करते हैं। इन स्थितियों में कोई भी परिवर्तन विभिन्न डिग्री के तनाव या तो हल्का या कठोर हो सकता है। बहुत अधिक उत्पादक जानवर हल्के तनाव के प्रति भी बहुत संवेदनशील होते हैं जैसे कि आहार व्यवस्था और प्रबंधन में अचानक बदलाव। दूध देने के समय में अचानक परिवर्तन, दूध दुहने वाले का बदलाव, दूध देने वाली मशीन के कप बदलने से भी तनाव होता है और उच्च उत्पादक भैंसों में दूध उत्पादन कम हो जाता है। अत्यधिक उत्पादक डेयरी पशुओं को एक निश्चित स्थान पर सीमित करना और गर्दन जंजीरों से बांधना, भले ही उन्हें आदर्श फ्लोर जगह दी गयी हो, फिर भी उच्च प्रकार के दुधारू पशुओं में तनाव से कभी भी इनकार नहीं किया जा सकता है।
कई अध्ययनों के बाद निश्चित सीमित जगह पर पशुओं को बांधने की प्रथाओं से पशुओं पर हो़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव दर्ज किये गये हैः
- सीरम कोर्टिसोल स्तर में वृद्धि। मुंबई वेटरनरी कॉलेज में हमारे प्रयोग में यह पाया गया कि बंधीं भैंस में सीरम कोर्टिसोल का स्तर 0.52 से 0.54 माइक्रोग्रामध्डेसीलीटर था और खुले घरों में भैंस में 0.41-045 माइक्रोग्रामध्डेसीलीटर था।
- दूध का उत्पादन 10 से 15 प्रतिशत कम हो जाता है।
- बंधे हुए जानवरों के पिछले हिस्से (अङर) हमेशा गंदे रहते हैं इसलिए इन जानवरों को थन रोग होने का खतरा होता है।
- बंधे हुए जानवरों के दूध की सूक्ष्मजीवविज्ञानी गुणवत्ता खराब होती है क्योंकि दूध अस्वच्छ परिस्थितियों में प्राप्त किया जाता है। इन तनावपूर्ण अस्वच्छ परिस्थितियों में दूध में एसपीसी गणना, कोलाई फॉर्म गणना, खमीर और मोल्ड गणना हमेशा अधिक होती है
- बांधे रखने और व्यायाम की कमी के कारण इन जानवरों की चारा दक्षता कम है।
- आगंतुकों को, ये जानवर गंदे दिखते हैं और उनकी जांघों और पिछले क्वार्टरों पर काले धब्बे होते हैं, जिससे बड़े वाणिज्यिक फार्म के बाजार मूल्य में कमी आती है।
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लेखक
डॉ. एम. आय. बेग |
अनुवादक
डाॅ. राजेश कुमार |