भारतीय गायों में दुध उत्पादन बढ़ाने का उपाय

भारत दुग्ध उत्पादन में विश्व में प्रथम स्थान रखता है। लेकिन प्रति पशु ढूध के द्रष्टिकोण से हम अभी भी अन्य देशो से पीछे है, शायद इसी को देखते हुए, भारत सरकार ने दुग्ध उत्पादन में 23 प्रतिशत की वार्षिक दर से बढाने का निर्णय लिया है। इस अध्याय में यह बताया गया है कि कैसे खर्चा में कटौती करके तथा कुछ महत्वपूर्ण रणनीति अपनाकर गाय का दूध बढ़ाने का उपाय, दुग्ध उत्पादन को कैसे बढाया जा सकता है। भारत देश में शाकाहारी लोगों की संख्या ज्यादा है। अतः डेयरी उत्पाद इनके प्रोटीन का प्रमुख आधार है। दुध से बनने वाला पनीर, घी, छाछ तथा मावा महत्वपूर्ण डेयरी उत्पाद है। तथा शाकाहारी लोगों द्वारा इनका उपयोग देश को डेयरी उत्पाद को तथा इनके उपयोग में अग्रणी बनाता है।

मगर कुछ कारक है जो भारतीय गायों को वैश्विक स्थिति के मुताबिक दुध उत्पाद से रोकते है। जैसे निम्न अनुवांशिकी, निम्न गुणवत्ता वाला आहार तथा पशु चिकित्सकों की अनुउपलब्धता इत्यादि। इन्ही कारणों की वजह से भारतीय डेयरी संचालक अपने पशुओं से अत्यधिक लाभ प्राप्त नहीं कर पा रहे है। आसान शब्दों में कहे तो पशुओं को अच्छा आहार, प्रबंधन देकर, उनमें तनाव को कम करके दुग्ध उत्पादन को आसानी से बढाया जा सकता है।

गाय का दूध बढ़ाने की सबसे सस्ती विधि – आहार की व्यवस्था

गाय का दूध बढ़ाने की सबसे सस्ती विधि
गाय का दूध बढ़ाने का उपाय
  1. पशुओं को रोज साफ पानी पीने को देना चाहिए।
  2. 8-10 किलों ग्राम भुसा देना चाहिए।
  3. 20-25 किलों ग्राम हरा चारा खिलाना चाहिए। हरा चारा भी एक ही किस्म का न देकर अलग-अलग किस्म का उपलब्ध कराना चाहिए। जैसे कभी ज्वार, कभी रिजका, कभी ल्युसर्न आदि।
  4. हरे चारे को छोटे-छोटे टुकडों मे काटकर देना चाहिए। इससे इसकी खपत बढती है। तथा नुकसान भी कम होता है।
  5. गाय भैंस का दूध बढ़ाने का तरीका के आधार पर चुनी/खल/अनाज़ अदि खिलाना चाहिए। देशी गाय को 2.5 किलोग्राम दुध पे 1 किलोग्राम खिलाना चाहिए। चुनी/खल/अनाज़  भी बदल बदल कर देना चाहिए, जैसे कभी कपास की खली, कभी सरसों की खली, कभी गेहु का दलिया इत्यादि।
  6. प्रति दिन 50 ग्राम खनिज लवण मिश्रण खिलाना चाहिए जिससे पशुओं में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी ना हों।

गाय का दूध बढ़ाने की सबसे सस्ती विधि – तनाव को कम करना

  1. प्रतिदिन एक जैसा दिनचर्या अपनानी चाहिए।
  2. गर्मियों में दिन में दो बार पशु को नहलाना चाहिए।
  3. दिन में तीन बार गोबर हटाना चाहिए।
  4. जानवर के साथ मारपीट नहीं करनी चाहिए।
  5. जानवरों को रखने के स्थान पर मख्खी, मच्छर नहीं होने चाहिए।
  6. ज्यादा जानवरों को कम स्थान में न रखे।
  7. हर ६ माह पर पशुओ को कीड़े की दवाई देनी चाहिए ।क्योकि पेट में ज्यादा कीडे होनेे पर दुध उत्पादन घटता है।
  8. पशुओ पर व्याह परजीवी देखते ही उनका निराकरण करना चाहिए ।
  9. संक्रामक बीमारियों के लिए समय समय पर पशु चिकित्सा अधिकारियो की सलाह लेकर टीकाकरण करवाते रहना चाहिए। 
  10. रोज एक ही समय पर दुध एक ही व्यक्ति द्वारा निकालना चाहिए।
  11. धीरे धीरे दुध निकालने पर दुध उत्पादन घटता हैै। अतः तेजी  से  ढूध  निकालना चाहिए।
  12. जानवर को तेज धुप में नहीं बाधना चाहिए।
  13. दिन में कुछ घण्टे के लिए जानवरों को खुले में चरने के लिए छोडना चाहिए। इससे पाचन अच्छा रहता है। तथा दुध उत्पादन बढाता है।

दुग्ध चक्र (लेक्टेसन साइकिल)

गाय में दो ब्यात के बीच का समय लेक्टेसन साइकिल कहलाता है। इससे चार भागों विभाजित किया गया है।

  1. प्रारम्भिक
  2. मध्य
  3. लेट
  4. ड्राई पीरियड

प्रारम्भिक 12 हफते तक गाय दुध उत्पादन के लिए उपलब्ध आहार के अतिरिक्त अपने शरीर मे जमा वसा का इस्तेमाल करती है। अतः ड्राई पीरियड में गाय को अच्छा आहार खिलाना चाहिए।

ब्यात से उच्च दुग्ध उत्पादकता तक

ब्यात के पष्चात गाय का शरीर 50 से 70 प्रतिशत तक भोजन का उपयोग कर पाता है। अर्थात पाचन क्रिया कम होती है 10 से 12 सप्ताह तक पाचन क्रिया उच्च स्तर तक पहुच जाती है। इस अवस्था में गाय अपने शरीर में जमा वसा का उपयोग करती है। जब गाय दुध उत्पादन का उच्च स्तर प्राप्त कर लेती है। तब तक पाचन क्रिया बढती रहती है। तथा इस समय सम्पूर्ण उर्जा आहार से प्राप्त होती है।

मध्यांत और उत्तरार्ध दुग्ध काल (मिड तथा लेट लेक्टेसन)

इस अवस्था में दुध उत्पादन के लिए उर्जा की जरूरत कम होती है। क्योकि दुध उत्पादन कम हो जाता है। अतः शेष उर्जा का उपयोग गर्भावस्था को सुचारू रखने तथा अगले ब्यात के लिए वसा के रूप में सुरक्षित रखा जाता है।

शुष्क काल (ड्राई पीरियड)

इस अवस्था में गाय दुग्ध उत्पादन शुन्य होता है। शरीर में वसा का जमाव होता है। जो प्रारम्भिक लेक्टेसन के समय उपयोग होता है। अगर गाय में पर्याप्त वसा का जमाव नहीं होता है। तो प्रारम्भिक लेक्टेसन में दुध उत्पादन कम होता है।

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डाॅ. राजेश कुमार

स्नातकोतर पशु चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान
पी.जी.आई.वी.ई.आर., जयपुर