दुधारू पशुओं में किलनी (Tick) प्रकोप एवं उनकी रोकथाम

दुधारू पशुओं के शरीर पर कई प्रकार के बाहय परजीवी पाये जाते है। जिनमें किलनी (Tick) प्रमुख बाहय परजीवी है। जैसा कि उनके नाम से विदित है यह परजीवी पशु के शरीर के ऊपर चिपके रहते है और पशु का खुन चूसकर अपना जीवन यापन करते है। किलनीया (Tick Infestation) मुख्तयः पशुओं के कान के चारो तरफ, थनो पर गर्दन, पूँछ के नीचे व पैरों के खुरों की त्वचा पर चिपके रहते है। दुधारू पशुओं को किलनीयो को 106 प्रजातियाँ प्रभावित करती हैं जिन्हें वैज्ञानिक रूप से इकसोडिड (Ixodes), बूफिलस (Boophilus), हायोलोमा (Hyalomma), रिपीसिफेलस (Rhipicephalus) व डर्मासेंटर (Dermacenter) जाति की किलनी कहा जाता है। इन सभी किलनीयों का जीवन चक्र इस प्रकार होता है की वयस्क व लार्वा अवस्था में वो पशु के शरीर पर चिपके रहते है तथा अण्डा देने के लिए मादा किलनी पशु के शरीर को छोडकर पशु शाला के फर्श व दिवारों में बने छेदो में छिपकर अण्डा देती है। एक मादा किलनी एक बार में 500 से 5000 अण्डे देती है। कुछ दिनों बाद इन अण्डों से निकले लार्वा अपना जीवन यापन करने के लिए पुन: उसी या किसी अन्य पशु के शरीर पर चिपक जाते है। नर किलनी हमेशा पशु के शरीर पर ही रहती है। वैसे तो किलनीया साल भर पशु के शरीर पर चिपकी रहती हैं। किलनीयों का प्रकोप सितम्बर, अक्टूबर, नवंम्बर एवं फरवरी, मार्च में सबसे अधिक होता है।

किलनीया पशु के स्वास्थ पर दो प्रकार के प्रतिकुल प्रभाव पैदा करती हैं।
अ. प्रत्यक्ष तौर पर (Direct effect)
ब. अप्रत्यक्ष तौर पर (Indirect effect)

अ. प्रत्यक्ष प्रभाव व लक्षण

  1. पशुओ का खून चूसती है जिससे पशु के शरीर में खून की कमी होने लगती है और पशु धीरे-धीरे कमजोर होने लगता है। एक किलनी एक दिन में 0.5 मिली से 2.0 मिली तक पशु का खुन चूस लेती है।
  2. पशु को भूख कम लगती है और वह सुस्त दिखाई देता है।
  3. पशु के शरीर पर खुजली व जलन होती है जिससे पशु में चिढचिढापन बढ जाता है।
  4. पशु की चमढी खराब हो जाती है व बाल झडने लगते है।
  5. पशु की दूध उत्पादकता घट जाती है।
  6. किलनीयों का प्रकोप अधिक संख्या में होने पर पशु की प्रजनन में अधिक विलंब होता है।
  7. बैलों की कार्य करने की क्षमता घट जाती है।

ब. अप्रत्यक्ष प्रभाव

किलनीया जहाँ एक ओर पशुओं का खून चूस कर उनकी उत्पादन क्षमता को कम करती है वही दुसरी और अप्रत्यक्ष रूप से कई प्रकार के जीवाणू, विषाणू व प्रोटोजोआजनिक घातक रोगों को भी संचारित करती है। जिनमें थिलेरियोसिस, बबेसियोसिस, एनाप्लॉजमोसिस, किलनी ज्वर व पक्षाघात प्रमुख रोग हैं ।

किलनी नियंत्रण

सामान्यतः  पशुओ में किलनी नियंत्रण हेतु रासायनिक कुटकीशासन (Chemical insecticides) का प्रयोग किया जाता है जो ज्यादातर सिंथेटिक है तथा आर्गेनोफास्फरस कंपाउंड से तैयार होती है। इनके प्रयोग से पशुओं के शरीर पर उपस्थित किलनी तो शत प्रतिशत रूप से मर जाती है मगर दिवारों के छेदों में रह रहे अंडे नहीं मरते। रासायनिक कंपाउंड जहरीले होते है अत: इनके प्रयोग में बहुत सावधानी की आवश्यकता होती है। इनके प्रयोग से कैन्सर होने का भी खतरा होता है। पशुओं पर इनके ज्यादा प्रयोग से किलनीयों में प्रतिरोधक क्षमता (Drug resistances) भी विकसित हो जाती है और वह किलनी नियंत्रण में कारगर नहीं रहते।

सामान्यतः प्रयोग में आने वाले एकेरीसाइड में पायरेथ्रोइड (साइपरमेथ्रिन व डेल्टामेथ्रिन) व आर्गेनोफॉस्फेट (हेक्साफेन, कोमाफोस व फेनवालेरेट) प्रमुख है। डेल्टामेथ्रिन बाजार में बुटोक्स के नाम से उपलब्ध है जिसे स्प्रे या डिप के रूप में प्रयोग किया जाता है। बुटोक्स की 2 मिली दवा को एक लीटर पानी में घोलकर पशु को नहलाने में प्रयोग की जानी चाहिए और 5 मिली दवा एक लीटर पानी में घोलकर पशु बाडे की दिवारों पर छिडकना चाहिए। क्योंकि यह सभी रासायनिक कंम्पाउंड पशु के लिए जहरीले होते है अत: इनके शरीर के उपर लगाने के बाद में पशुओं के मुँह पर मुषिका अवश्य लगा दें ताकि पशु इन्हे चाट ना ले। अमीट्राज दवा बाजार में टेकटिक नाम से में उपलब्ध है। इसकी 2 मिली दवा एक लीटर पानी में घोलकर लगाना चाहिए।

अमीट्राज एवं डेल्टामेथ्रिन (DeltamethrinKatyayani Deltamethrin 1.25% ULV for Mosquitoes Cockroaches Bed Bugs Flies Flying and Crawling Household Quick Knock Down Insecticide Insects Thermal or Ultra Low Volume Fogging Spray (1 L) Deltamethrin) को मिलाकर नया कंपाउंड मी बाजार में उपलब्ध है। इसके अलावा फ्लूमेथ्रिन दवा भी बाजार में उपलब्ध है। इस दवा की विशेषता यह है की इससे पशु को नहलाना नही पडता बल्कि पशु के सींगो के बिच की हड्डी से लेकर पुछ की हड्डी तक पूरी पीठ पर एक सीधी रेखा में रिढ की हड्डी पर इस दवा को लगा देते है। यह दवा पशु की त्वचा के रास्ते से अन्दर जाकर पशु को किलनी नही होने देती और इसका असर तीन महींनो तक रहता है। पशुओं को इन दवाओं के घोल से नहलाने से पहले पानी अवश्य पिलाना चाहिए। किलनी नियंत्रण हेतु आइवरमेक्टिन डोरामेक्टिन नामक दवा इंजेक्शन व टेबलेट के रूप में भी उपलब्ध है। इस दवा को 1 मिली प्रति 50 कि ग्रा पशु भार के हिसाब से त्वचा के नीचे इंजेक्शन के रूप में दी जाती है।

 

Tick infection in cattle

रासायनिक एकेरीसाइड का मनुष्य, पशुओं व वातावरण पर विपरीत प्रभाव पडता है अत: इनका प्रयोग बहुत सावधानी से करना चाहिए और पशुवाडो व घर में इन दवाओं को बच्चों की पहुँच से दुर रखना चाहीए। किलनी नियंत्रण हेतु पशुचिकित्सा की प्राचीन परंपरा से जुडी बहुत सारी एथनोवेटेरीनरी मेडिसीन अथवा हर्बल मेडिसीन भी कहते है, रासायनीक एकेरीसाइड के प्रभावी एवं सस्ते विकल्प रूप में बजार में उपलब्ध हैं। ये सभी दवायें वनस्पती जैसे नीम, तम्बाकू, सिताफल, देवदार, युकेलिप्टिस, तेजपत्ता, पुदीना एवं लहसन आदि से बनायी जाती है। इनके प्रयोग से जहाँ पशु किलनी से मुक्त रहता है वही इनका पर्यावरण, मनुष्य व पशुओं के स्वास्थ पर कोइ विपरीत प्रभाव भी नही पडता। किलनीयों के लिए होमिओपॅथिक दवा पाइरिथ्राम (Pyrethrumpyrethrin) काफी उपयोगी है।

पशुओं में किलनीयों से बचाव :

  1. पशुशाला में गंदगी नही होने दे। किलनीया अंधेरी व सीलन वाली जगह में अण्डे देती है अत: पशुशाला में सफाई का ध्यान रखना चाहीए। जहा पशु बैठते है वहा सुखा रहना चाहीए।
  2. पशुवाडों में समुचित हवा व रोशनी का प्रभंद होना चाहीए।
  3. पशुओं को संतुलित आहार देना चाहीए।
  4. बाहर से खरीदकर लाये पशुओ को अन्य पशुओं से कम से कम दो सप्ताह तक अलग रखना चाहीए।
  5. पशुओं को गंदे नाले व तालाबों में न बैठने दे।


 

डॉ. के. एम. पाठक

पूर्व उपमहानिदेशक, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली एवं पूर्व कुलपति, दुवासु, मथुरा

डॉ. के. आर. शिंगल

पूर्व प्रादेशिक सह आयुक्त, पशुसंवर्धन, महाराष्ट्र सरकार
ईमेल आयडी : drkrshingal@gmail.com

बाजार में उपलब्ध उत्पाद:

RIDD Growvit Powder Norbrook 2251053C Ivermectin-Noromectin Injection 1-Percent-500 cc

अधिक पढ़े: डाउनर काऊ सिंड्रोम का निदान और उपचार