गर्भवती गायों का टीकाकरण जन्म लेने वाले बछड़ों के लिए लाभकारी
पिछले महीने मैंने टीकाकरण के पीछे विज्ञान पर एक ब्लॉग लिखा था। कई सहयोगियों ने गर्भवती गायों के टीकाकरण के बारे में मेरे विचार जानने के लिए मुझसे संपर्क किया। मुझे पता है कि कई पशु चिकित्सक अभी भी मानते हैं कि गर्भपात के डर से गर्भवती गायों का टीकाकरण नहीं किया जाना चाहिए। यही हमें पशु चिकित्सा कॉलेजों में पढ़ाया जाता था। इसलिए, मैंने इस विषय पर शोध करने के लिए कुछ समय बिताने का फैसला किया कि गर्भावस्था में टीकाकरण नहीं करने का यह नियम कैसे और कहाँ से आया है और दूसरी बात यह है कि क्या वैज्ञानिक साक्ष्यों के आधार पर इस प्रश्न का कोई मान्य उत्तर है। यह लेख मवेशीयों में टीकाकरण कार्यक्रम और इससे होने वाले लाभों के बारे में जानकारी प्रदान करता है।
क्या इंसानों के लिए जो सच है वह गायों के लिए भी हैं?
ऐसा लगता है कि गायों में गर्भावस्था में टीकाकरण नहीं करने का नियम मानव चिकित्सा से आया है, जिसमे गर्भपात या भ्रूण की बढ़ती विकृति प्रमुख चिंता थी। मनुष्यों और अन्य मोनोगैस्ट्रिक जानवरों में, मातृ और भ्रूण के संचलन के बीच एक एकल परत बाधा होती है इसलिए अणुओं, छोटे प्रोटीन, और जीवों जैसे कि वायरस भ्रूण के संचलन को आसानी से पार कर लेते है। इसलिए, यह संभव है कि गर्भावस्था में दिए जाने वाले टीके से एंटीजेनिक कारक नाल के माध्यम से गुजर सकते हैं और पशु में गर्भपात करा सकते हैं। इसके विपरीत, गायों और अन्य जुगाली करने वालों में, बाधा तीन-स्तरिय होती है इसलिए प्राथमिक पोषक तत्वों को छोड़कर, अन्य अणु अपरा बाधाओं को पार नहीं कर सकते हैं। यह अध्ययन से साबित हुआ कि गोजातीय वायरल डायरिया (बीवीडी) जिसे सबसे छोटे रोगजनक वायरस के रूप में जाना जाता है, जब गर्भवती गायों को प्रयोगात्मक रूप से संक्रमित किया गया था, तो वे भ्रूण को संक्रमित नहीं कर सकते थे मतलब वो अपरा बाधाओं को पार नहीं कर सकते हैं। जब भ्रूण के एमनियोटिक द्रव को बीवीडी से संक्रमित किया गया, तब मध्य-गर्भ भ्रूण (झ 150 दिन) में जन्म के बाद रक्त में बीवीडी एंटीबॉडी पायी गयी। चॅूकि एंटीजन प्लेसेन्टल बैरियर को पार नहीं कर सकते अतः यह अध्ययन इस बात को साबित करता हैं कि झ 150 दिनों के पुराने गाय के भ्रूण में प्रतिरक्षा प्रणाली विकसित हो चुकी है, नए जन्मे बछड़े का रक्त एंटीबॉडी से मुक्त है। इससे यह मिथक भी खत्म हो जाना चाहिए कि टीके गायों में बढ़ते भ्रूण को नुकसान पहुंचाएंगे।
गायों का टीकाकरण बछड़ों की रक्षा के लिए भी करें
एक विपरीत दृष्टिकोण सामने आया है कि गर्भावस्था की अंतिम अवस्था में गायों को टीका लगाने से बछड़े को स्वास्थ्य लाभ हो सकता है। आइए हम विज्ञान के आधार पर इसकी जांच करें। पहले तीन दिनों के दौरान जुगाली करने वाले पशु, प्रसव के पहले तीन दिनों के दौरान दूध स्रावित करते है, जिसे कोलोस्ट्रम कहा जाता है, जो एंटीबॉडी, वृद्धि कारक, महत्वपूर्ण पोषक तत्व और प्रतिरक्षा कोशिकाओं से समृद्ध है। दिलचस्प रूप से नए जन्मे बछड़े को कोलोस्ट्रम पिलाने पर ये सभी अणु बरकरार रहते हैं। यह अद्भुत घटना केवल बछड़े के जीवन के पहले कुछ दिनों में होती है और बाद में आंत द्वारा अवशोषण बंद कर दिया जाता है। कोलोस्ट्रम के संश्लेषण के उपापचय मार्गों पर बहुत कुछ नहीं जाना जाता है, यह कैसे ट्रिगर होता है और फिर कोलोस्ट्रम के लिए जिम्मेदार जीन का एक पूरा समूह 3 दिनों के भीतर बंद कर दिया जाता है और अडर सामान्य दूध का उत्पादन शुरू कर देता है, और कोलोस्ट्रम में एंटीबॉडी की उत्पत्ति और अन्य अणु को समझने की आवश्यकता हैं।
मेरे अध्ययन से साबित होता है कि कुछ काविंग प्रोसेस फैक्टर से ट्रिगर के तहत प्रतिरक्षा प्रणाली से रक्त और फिर अडर तक स्रावी एंटीबॉडी (प्हळ1) का जमाव होता है। हमने पाया कि गाय के सभी संभावित संक्रमणों के खिलाफ एंटीबॉडी का यह जमाव उसके काविंग के 14-21 दिनों के दौरान शुरू हुआ था, जबकि अधिकतम एंटीबॉडी काविंग के अंतिम 3-5 दिनों के दौरान रक्त में पायी गयी। जब इन एंटीबॉडी का सेवन नवजात बछड़े द्वारा किया गया तब इसके अवशोषण से इनमें निष्क्रिय प्रतिरक्षा व प्रतिरक्षा प्रणाली सुदृढ़ होती है जो मुख्य रोगों से बचाव के साथ-साथ सर्वोत्तम विकास में सहायक है। इसलिए, जब एक गर्भवती गाय को स्मृति कोशिकाओं का टीका लगाया गया, तो यह एक तरफ गाय को प्रतिरक्षा प्रदान करता है साथ ही बछड़ों में बड़ी मात्रा में एंटीबॉडी भी गुप्त रूप से जन्म के समय निष्क्रिय प्रतिरक्षा प्रदान करने के लिए स्रावित करता है। यह मेरे द्वारा एक फार्म पर किए गए एक अध्ययन में साबित हुआ था, जिसमें ई़़. कोलाई मेट्राइटिस और बछड़ा-दस्त की अत्यधिक घटना थी। फार्म प्रजनन को दोहराने के लिए अच्छी गायों और बेहतर आनुवंशिक बछड़ों को खो रहा था।
हमने ई कोलाई आइसोलेट्स से टीके तैयार किए और हाइपरिमुनिज्ड, गायों में गर्भावस्था की अंतिम अवस्था में टीकाकरण किया हमने पाया कि कोलोस्ट्रम ई कोलाई एंटीबॉडी में समृद्ध था जिसने बछड़ों को रुग्णता और मृत्यु दर को कम किया और गायों की भी मदद की क्योंकि मेट्राइटिस की घटना में काफी कमी आई। इससे हाइपरम्यून हेल्थ मिल्क पर और अध्ययन किया गया। इस अध्ययन में, 7 और 8 महीने के गर्भ के दौरान गर्भवती गायों को एच पाइलोरी (गैस्ट्रिक अल्सर के लिए सामान्य कारण कारक) एंटीजन के साथ हाइपरिममुनाइज्ड किया गया था। ऐसी गायों के कोलोस्ट्रम को एच पाइलोरी एंटीबॉडी में समृद्ध पाया गया। जब इन गायों को दूध देने के दौरान टीका लगाया गया, तो दूध भी एच पाइलोरी एंटीबॉडी में समृद्ध पाया गया। ये और अन्य प्रकाशित अध्ययन इस बात को साबित करते हैं कि गर्भावस्था में टीकाकरण भी बछड़ों के लिए लाभकारी होगा। उदाहरण के लिए, उन क्षेत्रों में, जहाँ खुरपका और मुहपका रोग है और वहाँ बछडो में मृत्यु दर है, खुरपका और मुहपका के साथ गर्भवती गायों का टीकाकरण करने से ऐसी अतिगामी गायों से कोलोस्ट्रम पर खिलाए गए युवा बछड़ों में निष्क्रिय प्रतिरक्षा प्रदान होगी।
क्या ऐसे टीके व्यावसायिक रूप से उपलब्ध हैं?
संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा, और संभवतः अन्य विकसित देशों में, ई कोलाई, साल्मोनेला, रोटा और कोरोनावायरस वैक्सीन जैसे एंट्रो-पैथोजन वैक्सीन उपलब्ध हैं। इन एंटर-पैथोजेन से बछड़े को बचाने के लिए, गाय को गर्भावस्था में टीका लगाया जाना चाहिए जिससे कोलोस्ट्रम में उच्च एंटीबॉडी स्तर और बछड़े को बेहतर निष्क्रिय रोग प्रतिरोधक क्षमता प्राप्त हो सके।
निष्कर्ष
अतः पशु चिकित्सकों को इस मिथक से बाहर आना चाहिए कि गर्भवती गायों को टीका नहीं लगाया जाना चाहिए क्योंकि टीकाकरण से संबंधित गर्भपात एक दूरस्थ संभावना है। गर्भपात, हालांकि, मातृ कारकों और संक्रमणों के कारण हो सकता है जो बड़े पैमाने पर अपरा विकृति के कारण होता है। यहाँ अध्ययन से पता चलता है कि जहाँ तक मृत टीकों का संबंध है, ये गर्भावस्था के किसी भी चरण में सुरक्षित हैं, जबकि, जीवित संशोधित टीकों को गर्भावस्था में सावधानीपूर्वक लगाना चाहिए। अध्ययनों से पता चला है कि जीवित संशोधित टीकों के मामले में, पहले वैक्सीन की खुराक को प्रजनन से पहले दिया जाना चाहिए और उस स्थिति में, बाद में गर्भावस्था में टीकाकरण गाय के साथ-साथ बछड़े के लिए भी सुरक्षित और अत्यधिक फायदेमंद होगा।
अनुवादक
डाॅ. राजेश कुमार
स्नातकोतर पशु चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान
पी.जी.आई.वी.ई.आर., जयपुर