नवजात बछड़ों के रोगों के बचाव के लिए सामान्य प्रोटोकॉल

डेयरी पशुओं का भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि बछड़ों का पालन कैसे किया गया है। आज के नवजात बछड़े कल की दुधारू गाय हैं। अच्छे डेयरी पशुओं को बनाने के लिए बछड़े शुरुआती बिंदु है। पशुपालन व्यवसाय में, यह हमेशा कई विशेषज्ञों द्वारा कहा जाता है कि “अच्छे पशुओं को पालना है खरीदना नहीं”। आदर्श रूप से किसी को अच्छे पशु बनाने के लिए अपने ही बछड़ों को पालना चाहिए। फार्म में अनुचित प्रबंधन और स्वच्छता के आभाव के कारण नवजात बछड़ों में संक्रमण और बीमारियां हो सकती हैं। इसलिए बछड़े के पालन-पोषण को वैज्ञानिक तरीके से किया जाना चाहिए और इसे आर्थिक रूप से प्राप्त करने की आवश्यकता है। वर्तमान लेख में आम नवजात बछड़े की बीमारियों और उन्हें नियंत्रित करने के लिए किए जाने वाले निवारक उपायों पर चर्चा की गयी गई है।

Newborn Calf Management

बछड़े आमतौर पर अपने जीवन काल के पहले छह महीनों में विभिन्न बीमारियों से पीड़ित होते हैं। कोलेस्ट्रम प्रतिरोधक क्षमता का अभाव नवजात बछड़े की बीमारियों और डेयरी उत्पादन में आर्थिक नुकसान के लिए एक प्रमुख संभावित कारण है। नवजात बछड़े पूरी तरह से विकसित मेज़बान रक्षात्मक प्रतिक्रिया (होस्ट डिफेन्स मैकेनिज्म) के साथ पैदा नहीं होते हैं, इसलिए वे कई बीमारियों से ग्रस्त होते हैं। अनुसंधान कार्यकर्ताओं ने उल्लेख किया कि जीवन के पहले तीन महीनों में बछड़ों की बीमारी और मृत्यु का सबसे बड़ा कारण जन्म के बाद बछड़ों को अपर्याप्त कोलेस्ट्रम पिलाना  है, इसलिए बछड़े के प्रारंभिक काल में कोलोस्ट्रम संरक्षण महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

बछड़े आमतौर पर अपने जीवन काल के पहले छह महीनों में विभिन्न बीमारियों से पीड़ित होते हैं। कोलेस्ट्रम प्रतिरोधक क्षमता का अभाव नवजात बछड़े की बीमारियों और डेयरी उत्पादन में आर्थिक नुकसान के लिए एक प्रमुख संभावित कारण है। नवजात बछड़े पूरी तरह से विकसित मेज़बान रक्षात्मक प्रतिक्रिया (होस्ट डिफेन्स मैकेनिज्म) के साथ पैदा नहीं होते हैं, इसलिए वे कई बीमारियों से ग्रस्त होते हैं। अनुसंधान कार्यकर्ताओं ने उल्लेख किया कि जीवन के पहले तीन महीनों में बछड़ों की बीमारी और मृत्यु का सबसे बड़ा कारण जन्म के बाद बछड़ों को अपर्याप्त कोलेस्ट्रम पिलाना  है, इसलिए बछड़े के प्रारंभिक काल में कोलोस्ट्रम संरक्षण महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

बछड़ों को कोलेस्ट्रम पिलाना

कोलोस्ट्रम माँ का पहला दूध है जो प्रसव के तुरंत बाद उपलब्ध होता है। इसलिए इसे नवजात के लिए पहला फीड कहा जाता है। इसमें एंटीबॉडी होते हैं जो जीवन काल के शुरुआती समय में नवजात को कई बीमारियों से बचाने के लिए निष्क्रिय प्रतिरक्षा (पैसिव इम्युनिटी) प्रदान करते हैं।

  1. कोलोस्ट्रम पिलाने का आदर्श (ओपतिमम) समय: कोलोस्ट्रम को जन्म के बाद 2 घंटे के भीतर पिलाया जाना चाहिए क्योंकि उस अवधि के दौरान कोलोस्ट्रम में एंटीबॉडी की अधिक सांद्रता (कंसंट्रेशन) मौजूद होती है जो बछड़े की आंत से तेजी से अवशोषित हो जाती है।
  2. कोलोस्ट्रम पिलाने की दर (रेट): इसे बछड़े के शरीर के वजन का 10% पिलाया जाना चाहिए, आमतौर पर नवजात बछड़े के लिए लगभग 2.5 किलोग्राम कोलोस्ट्रम पर्याप्त होता है।
  3. कोलोस्ट्रम पिलाने की आवृत्ति (फ्रीक्वेंसी): पाचनसंबंधी परेशानियों से बचने के लिए इसे 2-3 खुराक में विभाजित किया जाना चाहिए।
  4. कोलोस्ट्रम पिलाने की अवधि (पीरियड): इसे जन्म के कम से कम 3 से 7 दिनों के लिए दिया जाना चाहिए। आदर्श रूप से, एक बछड़े को पहले 3 दिनों के लिए रोजाना 2-2.5 लीटर देना चाहिए।

कोलोस्ट्रम फीडिंग का महत्व

    1. कोलोस्ट्रम में गामा ग्लोब्युलिन नामक एंटीबॉडी होता है जो विभिन्न रोगों के खिलाफ बछड़े को निष्क्रिय प्रतिरक्षा (पैसिव इम्युनिटी) प्रदान करता है।
    2. इसमें एक रेचक (लेक्सेटिव) क्रिया होती है जो मेकोनियम को बाहर निकलने में मदद करता है जिसकी बजह से जन्म के बाद उचित मलोत्सर्ग (देफ़िकेशन) होता है।
    3. कोलोस्ट्रम में प्रोटीन की मात्रा सामान्य दूध की तुलना में 3-5 गुना अधिक होती है।
    4. कोलोस्ट्रम विटामिन ए, बी-2, कोलिन, थायमिन और साथ ही कैल्शियम, फास्फोरस, तांबा (कॉपर), लोहा (आयरन), मैग्नीशियम, आदि जैसे खनिजों की आपूर्ति करता है।
    5. कोलोस्ट्रम इम्युनोग्लोबुलिन प्रदान करता है जो छोटी आंत से अवशोषित होता है और सिस्टमिक रोगों के खिलाफ निष्क्रिय प्रतिरक्षा (पैसिव इम्युनिटी) प्रदान करता है। कोलोस्ट्रम में इम्युनोग्लोबुलिन आंत में मौजूद रोगजनक बैक्टीरिया को बेअसर करता है।

बछड़ों के महत्वपूर्ण सामान्य रोग

काफ स्कोउर्स (बछड़ा दस्त) / कोलीबेसोलिसिस: डेयरी बछड़ों में एक महत्वपूर्ण बीमारी जो मृत्यु दर का उच्चतम कारण बनता है।
कारण: बैक्टीरियल-ई कोलाई, वायरल-रोटा वायरस, कोरोना वायरस, और कोलोस्ट्रम की अपर्याप्त फीडिंग, अस्वच्छ फार्म प्रवृत्त कारण (प्रेदिस्पोसिंग फैक्टर) हैं।
लक्षण: भूख न लगना, कमजोरी, पानी की कमी, बुखार, एक अप्रिय गंध के साथ दस्त लगना । मल पीले-भूरे, सफेद और कभी-कभी खून से सने हुए रंग (ब्लड स्टेंड) से अभिलक्षित होता है। एक विषेश भ्रूण के जैसी गंध (फेटिद ओडौर) मल से आती है।
प्रबंधन: नवजात बछड़े को पर्याप्त कोलेस्ट्रम पिलाये। काफ स्कोउर्स के लिए टीकाकरण। एक पशु चिकित्सक द्वारा बीमार पशुओं को द्रव चिकित्सा, विशिष्ट एंटीबायोटिक दवाओं और सहायक उपचार के साथ इलाज किया जाना चाहिए। फार्म में एक अच्छा स्वच्छ वातावरण बनाए रखें।

नेवल इल  (ओम्फलाइटिस / ओमफैलोपेलेबिटिस)
कारण: स्टैफिलोकोकस, ई कोलाई, आदि का मिश्रित संक्रमण।
लक्षण: प्रभावित बछड़े में आमतौर पर नाभि के स्थान पर दर्दनाक सूजन, मवाद और पीपदार सामग्री का स्त्राव, तापमान में उच्च वृद्धि और कम भूख लगना। प्रभावित बछड़ा कमजोर और सुस्त दिखाई देता है।
प्रबंधन: नेवल / अम्बिलिकल कॉर्ड को जन्म के बाद सूती धागे से बांधा जाना चाहिए और संक्रमण को नियंत्रित करने के लिए जन्म के बाद नेवल  कॉर्ड को 5% पोविड़ीन आयोडीन  घोल में डुबो देना चाहिए।

जॉइंट इल (सेप्टिक आर्थराइटिस)
कारण: नेवल कॉर्ड संक्रमण के बाद की परेशानियाँ। कभी-कभी यदि नेवल इल का इलाज नहीं किया जाता है, तो संक्रमण रक्तप्रवाह (ब्लडस्ट्रीम) के माध्यम से फैल सकता है और शरीर के अन्य भागों को प्रभावित कर सकता है। बैक्टीरिया के बसने (सेटल) के लिए सबसे सामान्य स्थान(साईट) जोड़ों (जॉइंट्स) में होता है।
लक्षण: प्रभावित बछड़े के जोड़ों में दर्दनाक सूजन होती है और उच्च बुखार, एनोरेक्सिया, सुस्ती और जोड़ों से स्त्राव दिखाई देता है।
प्रबंधन: प्रारंभिक और शीघ्र देखभाल फायदेमंद होगी। एंटीबायोटिक्स और दर्द निवारक दवाएं प्रभावी हैं। एक साफ और स्वच्छ वातावरण बनाए रखें , नेवल कॉर्ड के संक्रमण को रोकने के लिए जन्म के बाद नेवल फ्लैप पर टिंचर आयोडीन लगाना और कोलोस्ट्रम फीडिंग।

वर्म इन्फेस्टेशन (आंतरिक परजीवी भार)
कारण: राउंडवॉर्म, हुकवर्म और टेपवर्म
लक्षण: प्रभावित बछड़े में दस्त, रफ़ हेयर कोट, एनीमिया, पॉट बेली अपीयरेंस जैसे लक्षण दिखाई देते हैं।
प्रबंधन: निर्धारित खुराक के अनुसार ब्रॉड-स्पेक्ट्रम डीवार्मर्स । नियमित समय पर डीवार्मिंग करना चाहिए।

काफ सेप्टिसीमिया (रक्त में विषाक्त पदार्थों की उपस्थिति)
कारण: नाभि संक्रमण का विस्तार (एक्सटेंशन), ई कोलाई और साल्मोनेला जैसे जीव शामिल हैं।
लक्षण: प्रभावित बछड़ा सुस्त, उदास, कमजोर, खड़े होने के लिए अनिच्छुक, गंभीर विषाक्त स्थिति (टोक्सेमिक कंडीशन) , सक्लिंग की समस्या में दिखाई देता है।
प्रबंधन: निष्क्रिय प्रतिरक्षा (पैसिव इम्युनिटी) विकसित करने के लिए बछड़े को पर्याप्त कोलोस्ट्रम पिलाना ।अम्बिलिकल कॉर्ड संक्रमण का उचित प्रबंधन।

बछड़ा निमोनिया (एनज़ूटिक निमोनिया) (श्वसन रोग)
कारण: कारण बहुक्रियाशील (multifactorial) है – वायरस, बैक्टीरिया, माइकोप्लाज्मा स्पीशीज है।
लक्षण: प्रभावित बछड़े में नाक से स्त्राव , सूखी खांसी, तापमान 104-1050 F, सांस की तकलीफ और भूख में कमी दिखाई देती है।
प्रबंधन: बछड़े को अच्छा वेंटिलेशन प्रदान करें। विशिष्ट कारण का पता लगाना और प्रबंधन प्रोटोकॉल का चयन करना। एंटीबायोटिक्स, ब्रोन्कोडायलेटर्स और एंटीहिस्टामिनिक का प्रयोग फायदेमंद हो सकता है। निवारक प्रोटोकॉल के रूप में टीकाकरण किया जाना चाहिए।

नवजात बछड़ा रोगों का नियंत्रण डेयरी पशुओं के भविष्य को बचाने के लिए प्रमुख आवश्यक है। नवजात बछड़े की बीमारियों को नियंत्रित करने के लिए निम्नलिखित कुछ सामान्य प्रणाली (कॉमन प्रक्टिसेस) का पालन किया जाता है।

  • जन्म के तुरंत बाद, बछड़े के नथुने से बलगम को हटा दें जो बछड़े को बेहतर सांस लेने में मदद करता है
  • जन्म के बाद माँ के साथ बछड़ा रखें और गाय को बछड़े को चाटने की अनुमति दें जो बछड़े के शरीर में परिसंचरण (सर्कुलेशन) को बढ़ावा देता है और बछड़े को खड़े होने और चलने के लिए तैयार करता हैNewborn calf management
  • नाभि (नेवल ) कॉर्ड को सूती धागे से बाँधना और नाभि को 5% एंटीसेप्टिक पोविडोन-आयोडीन घोल से डुबोना महत्वपूर्ण है सूती धागे के साथ नाभि (नेवल ) कॉर्ड को टाई करने के लिए महत्वपूर्ण है

Newborn calf

  • कोलोस्ट्रम फीडिंग: कोलोस्ट्रम नवजात के लिए पहली फीडिंग हैं। इसमें एंटीबॉडी होते हैं जो जीवन काल के शुरुआती समय में नवजात शिशु को कई बीमारियों से बचाने के लिए निष्क्रिय प्रतिरक्षा (पैसिव इम्युनिटी) प्रदान करते हैं। कोलोस्ट्रम को पिलाने और उसके महत्व का विवरण पहले ही बताया जा चुका है। नवजात बछड़ों को जन्म के बाद कोलोस्ट्रम प्राप्त करने की आवश्यकता होती हैNewborn Calf Management
  • कृमि की रोकथाम के लिए 10-15 दिनों के भीतर और बाद में मासिक आधार पर 6 महीने डीवार्मिंग की जाना चाहिए और बछड़े के स्वास्थ्य को बढ़ावा देना चाहिए।
  • पंजीकृत पशु चिकित्सक के माध्यम से बछड़े का टीकाकरण 3 महीने से अधिक उम्र में किया जाना चाहिए ताकि पर्याप्त मात्रा में एंटीबॉडी का उत्पादन करके संक्रामक रोग के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता का निर्माण किया जा सके।
  • बेहतर विकास (ग्रोथ) और प्रारंभिक परिपक्वता (अर्ली मैचोरिटी) के लिए 2-8 सप्ताह से बछड़ा स्टार्टर प्रदान किया जा सकता है।

अनुवादक

डॉ. निशा आरजू
एम. व्ही. एस. सी., वेटरनरी मेडिसिन