पशुओं के लिए नेपियर घास से बारहमासी हरा चारा

नाइट्रेट विषाक्तता

मवेशियों में नाइट्रेट विषाक्तता (Nitrate Poisoning) का कारण अत्यधिक मात्रा में नाइट्रेट या नाइट्रेट की चपेट में आने के कारण होता है। किसी भी तनाव की स्थिति जो पौधे की वृद्धि में अचानक कमी का कारण बनती है, एक सामान्य नायट्रोजन आपूर्ति के साथ, उन हरे चारे वाली फसलों में नाइट्रेट विषाक्तता में योगदान कर सकती है। नाइट्रेट विषाक्तता आमतौर पर युवा पौधा में सबसे अधिक होती है और पौधे की परिपक्वता के साथ घटती चली जाती है।

इनमें से कुछ कारन है

  • पौधे को धुप की कमी
  • उच्च तापमान या कम आर्द्रता
  • 2, 4  जैसे हर्बि साइड्स का हरे चारे वाली फसलों पर छिड़काव से
  • मृदा पोषक तत्वों का असंतुलन

अधिकांश हरे चारे वाली फसल में कुछ नाइट्रेट होता है। नाइट्रेट मवेशियों के लिए विशेषरूप से विषाक्त नहीं है। जब नाइट्रेट युक्त फसलों को जुगाली करनेवाले मवेशियों द्वारा खाया जाता है, तो नाइट्रेट आमतौर पर अमोनिया से टूट जाता है और बैक्टीरिया द्वारा सूक्ष्म प्रोटीन में परिवर्तित हो जाता है। नाइट्राइड इस प्रक्रिया में शामिल मध्यवर्ती उत्पादों में से एक, नाइट्रेट विषाक्तता का कारण है। नाइट्राइड में से कुछ पशु के रक्तप्रवाह में अवशेषित कर लिया जाता है, शेष नाइट्राइड हीमोग्लोबिन को मेटहीमोग्लोबिन में बदल देता है, जो फेफड़ो से ऊतकों तक ऑक्सीजन नहीं ले जा सकता है। नाइट्रेट विषाक्तता के सबसे संभावित संकेत कठिन और दर्दनाक श्वास, सियानोटिक झिल्ली, तेजी से श्वास, मांसपेशियों में कपन, कमजोरी, दस्त लगातार पेशाब है

नेपियर घास एक महत्वपूर्ण बारहमासी उष्णकटिबंधीय फसल है जो पोएसी कुल से संबंधित है। इसे युगांडा घास या हाथी घास भी कहा जाता है। इसकी उत्पति अफ्रीका से हुई है लेकिन अब कई उष्णकटिबंधीय देशो मे उगाया जाता है। सीमांत भूमि में अच्छी तरह से विकसित हो सकता है। घास लंबी होती है और बांस की तरह बड़े-बड़े गुच्छे बनाती है। यह कम रेशेदार, रसदार और स्वादिष्ट फसल है। इसका उपयोग मुख्य रूप से चारे के रूप में किया जाता है। आम तौर पर इसे सीधे मवेशियों को खिलाया जाता है। यह विशाल बायोमास का उत्पादन करता है और एक वर्ष में कई बार काटा जा सकता है जो इसे जैव ईंधन उत्पादन के लिए एक अच्छा कच्चा माल बनाता है। नेपियर घास को उगने के लिए कम पानी और पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। नेपियर घास में उच्च पोषक तत्वों  के कारण बिना एडिटिव्स के उच्च गुणवत्ता का साइलेज में बनाया जाता है।

पशुपालक के लिए हरे चारे की सबसे ज्यादा परेशानी होती है, बरसीम, मक्का, ज्वार जैसी फसलों से तीन-चार महीनों तक ही हरा चारा मिलता है। ऐसे में पशुपालक नेपियर घास लगाकर चार-पांच साल तक हरा चारा पा सकते हैं। नेपियर घास को किसी भी प्रकार की जलवायु एवं मिट्टी में उगाया जा सकता है। थार मरूस्थल में भी इसको आसानी से उगा सकते हैं। पशुधन के लिए हरे चारे के रूप में और जैव ईंधन की फसल के रूप में इसकी बहुत उच्च उत्पादकता है।

बुवाई का समय

यह एक बहुवर्षीय फसल है। जहा सिंचाई का पानी उपलब्ध है वहां इसे फरवरी-मार्च में तथा जहा सिंचाई का पानी उपलब्ध ना हो वहां इसे जून-जुलाई माह में उगाया जाता है। इसकी बुवाई के लिए जड या तने के टुकडे काम में लेते है। प्रति हेक्टेयर 20,000 टुकडों की आवश्यकता होती है। पूसा विशाल नैपियर की एक शानदार उपज है, लेकिन उपज उस पौधे की ऊंचाई पर निर्भर करती है जिस पर इसे काटा जाता है

कटाई का समय

बुवाई के  मात्र 80-90 दिनों  बाद यह हरे चारे के रूप में विकसित हो जाती है। एक बार घास की कर्टाइ  करने के बाद इसकी शाखाएं पुनः उगने लगती हैं और 40-50 दिन में वह दोबारा पशुओं  के खिलाने लायक हो जाती है। इसके  बाद चार से पांच साल तक इसकी कटाई की जा सकती है। घास के बेहतर उत्पादन के लिए प्रत्येक कटाई के बाद इसकी जड़ों में खाद डालनी चाहिए। इस घास में प्रोटीन की मात्रा और इसकी पाचकता ज्यादा होने के कारण दुधारू पशुओं को लगातार यह घास खिलाने से उनके दूध उत्पादन में वृद्धि होती है और साथ ही रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है।

नेपियर घास का पोषक मान शुष्क पदार्थ के आधार पर

अवयव का नाम प्रतिशत मात्रा
क्रूड प्रोटीन 11-12
क्रूड फाइबर 27.24
कुल कार्बोहाइड्रेट 16.45
कुल राख 22.20
पाचकता 60.00

पशुओं नेपियर घास खिलाने के फायदे

  • पशु के दूध उत्पादन में वृद्धि होती है।
  • पशु की प्रजनन क्षमता बढ़ती है।
  • पशु में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
  • पशु का शरीर भार बढ़ता है।

नेपियर घास का उपयोग कीटों के जैविक नियंत्रण एजेंट के रूप में

मक्का और शर्बत उत्पादक फसल में नेपियर घास का उपयोग एकीकृत कीट प्रबंधन रणनीति में भी किया जाता है। मक्के के स्टेबनेर मॉथ को नियंत्रित करने के लिए एक मूल्यवान जैविक एजेंट हो सकता है। यह कई फसलों की सीमाओं में भी उगाया जाता है जिससे कि हवा के प्रकोप से फसल को  बचाया जा सकता है।

 

Read: Poisoning/Diseases Caused by Toxins – Helpline


डाॅ. राजेश कुमार

स्नातकोतर पशु चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान
पी.जी.आई.वी.ई.आर., जयपुर