पशुवों में थनैला रोग (Mastitis)

थन की बीमारी को थनैला कहते हैं जिसमें गाय के थन से दूध आना बंद हो जाता है। पशुवों की यह बीमारी भारत में किसानों और गौ-पालकों को सालाना, कम से कम ₹6,000 करोड़ का नुकसान होता है। इस बीमारी के कारण, परीक्षण और कम करने के उपायों पर हम चर्चा करेंगे।

  • इस बीमारी के कारणों में दूध निकालने या दुहने की पद्धति एक बड़ा कारण है।
  • हम अंगूठे से थन पर दबाव डालकर दुहते है, जिससे पशु के थन पर ज़रुरत से ज्यादा दबाव पड़ता है। दूध दुहने की मशीनों में अंगूठा नहीं होता। इसलिए दूध निकालने में अंगूठे का इस्तेमाल किए बिना, दूध दुहने की तकनीक अपनानी होगी।
  • दूध निकालने से एक घंटा पहले पशु के बाड़े की साफ-सफाई खत्म हो जाना चाहिए।
  • दूध निकालने वाले व्यक्ति को कोई बीमारी ना हो औऱ उसके नाखून कटे हुए और हाथ साफ हो।
  • आनुवांशिक रुप से पशु को यह बीमारी हो सकती है। अगर पशु का आहार अपूर्ण और असंतुलित होगा तो वह थनैला की चपेट में आ सकता है।
  • समय की कठिनाइयो, गर्भाशय की बीमारियों और ब्याहने के समय जेर अटकने से यह बीमारी हो सकती है।

सावधानियां

  • तापमान में, नमी में अचानक या अधिक बदलाव होने पर उसका नियंत्रण करना चाहिए। पशुवों के खड़े रहने और बैठने की जगह का गीलापन कम करना होगा।
  • दूध निकालने के 40 मिनट बाद तक पशु नीचे नहीं बैठना चाहिए। दुहते वक्त आहार देने से पशु खड़ा रहेगा।
  • हमारे पशु बाड़े में थनैला रोग वाले विषाणु, जीवाणुओं पर नियंत्रण के उपाय किए जाए।

परीक्षण

  1. बीमारी का परीक्षण हर 3  हफ्ते में सीमटी (CMT) किट से करना चाहिए।
  2. दोहन के बाद पशु के सभी थनों में 5 मिनट तक टीट कप में डुबोकर  हमें थनैला के लक्षण पता चल जाते हैं।
  3. डेयरी व्यवसाय को फायदेमंद रखने के लिए परीक्षण किट को हमेशा बाड़े में रखना चाहिए।

प्रथमोपचार   

थन या उड़ी में सूजन है, तो एलोवेरा का रस थनों पर लगा सकते हैं, इसमें हल्दी  मिलाकर लगा सकते हैं। आयुर्वेदिक दवाइयां थनैला में अच्छा परिणाम देती है। आपके बाड़े में 21 होम्योपैथिक दवाइयों की किट प्रथमोपचार के लिए हमेशा होना चाहिए। उपचार के समय पशुवैद्य सलाहकार या डॉक्टर की सलाह ज़रुर लें (तकनिकी सलाहकार की मदद लेकर)।

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डॉ प्रशांत योगी

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