पशुओं मे लेंटाना की विषाकत्ता: जानकारी एवं  बचाव

पौधे प्रकृति का अभिन्न अंग है एवं हरे व सूखे चारे के रूप मे पशु राशन का प्रमुख हिस्सा भी है कुछ पौधे चारे के लिए अच्छे नहीं माने जाते है और पशुओं मे विषाकत्ता उत्पन्न करते है, उन्ही मे से एक है लेंटाना जिसे सामान्य भाषा मे कुरी, घाणेरी, घनेरी, सत्यानाशी या राईमुनिया रई कहा जाता है। यह विश्व की दस सर्वाधिक विषैली खरपतवारो मे से एक है जो भारत मे भी बहुत पाई जाती है। लेंटाना को सामान्य परिस्थितियों में बदबू के कारण  पशु नहीं खाते लेकिन अन्य चारो की उपलब्धता न होने पर भूख में पशु इसको भी ग्रहण कर लेता है, और इसकी विषाकत्ता से ग्रसित हो जाते है । लेंटाना की कुल ज्ञात चालीस  प्रजातियों में से एक लेंटाना एक्युलेटा है, जोकि अत्याहिक विषाकत्ता के लिए जिम्मेदार होता है जो कि पशुओं मे यकृत विषाक्ता तथा  प्रकाश सुग्राहीकरण करता है।  पत्ते एवं पके हुए फलो मे विषाकत्त पदार्थों की अधिक मात्रा मे होती है तथा जिनमे हरा फल अधिक विषाकत्त माना गया है।

Nerium

विषाकत्ता के कारण

लैटाना की विषाकत्ता तीन चरणो मे प्रकट होती है।

  1. जवरांत्र चरण
  2. यकृतीय चरण
  3. यकृत के बाद का चरण

जैसे-जैसे समय बीतता है लेंटाना की विषाकत्ता इसमें मौजूद लेंटेडीन नामक रसायनों के द्वारा होती है जो आंतो व आमाशय से अवशोषित हो कर जैव अणुओं के साथ यकृत कोशिकाओं में विभिन्न जैवरासायनिक प्रतिक्रियो द्वारा मिल जाता है, जोकि पित्त स्थिरता उत्पन्न करते है, और  यकृतीय कार्यप्रणाली को अवरूद्ध कर देते हैं। परिणामस्वरूप बाइलुरूविन एवं फाइलोएरीथ्रीन का रक्त मे स्तर बढ़ जाता है। बाइलुरूविन एवं फइलोएरोथ्रीन जब प्रकाश के प्रभाव में आते है तो प्रकाशसुग्रहीकरण उत्पन्न करते है।

लक्षण

गहरे हरे दस्त, कभी कभी कब्ज, गोबर में खून के रेशे, पशु का लडखडाना, प्रकाश के प्रति संवेदनशीलता,भूख नही लगना , श्लेष्म झिल्लियो का पीना होना , शरीर पर झुर्रियां पड़ना , तापक्रम का कम होना आदि परिस्थितियां पैदा हो जाती है ।

निदान

  • पशु यदि लेंटाना आच्छदित क्षेत्र में 2 या 2 से अधिक दिनो तक चरते रहे तो यह लेंटाना विषाक्ता को संकेत है।
  • उपरोक्त वर्णित लक्षणों की मौजूदगी।

उपचार

  • समीप के पशु चिकित्सक के तुरंत संपर्क करे।
  • सक्रियकृत चारकोल का उपयोग, मोलासेज युक्त भोज्य और एण्टी हिस्टामिन औषधिया लाभकारी है
    पशु को छायादार वातावरण मे रखकर सूर्य की रोशनी से बचाना चाहिए क्योंकि सूरज की रोशनी में आने पर विषाक्ता का प्रभाव बढ़ जाता हैं।
  • पशु को लेंटाना उपस्थिति वाले क्षेत्र से दूर रखे।
  • यकृत रक्षात्मक दवाये जैसे लीवरसत (लीवर एक्सट्रेक्ट), विटामिन बी काम्पलेक्स आदि देना चाहिए।
  • लक्षणात्मक उपचार व सहारात्मक उपचार आवश्यक है।

शव विच्छेदन परीक्षण

इस बीमारी से मृत पशु का शव विच्छेदन करने पर निम्न जरब या आघात मिल सकते है –

  1. यकृत में सुजन के साथ उसका  गेरुवा  रंग का होना ।
  2. रोमंथी भोज्य पदार्थ अत्यधिक शुष्क एवं अपाचित रहते है।
  3. सृहदात्र के पास मल एकत्रित हो जाता है।
  4. अधिवृक्क ग्रथियों का आकार सामान्य से बड़ा हो जाता है।

डॉ. मुकेश श्रीवास्तव

प्रभारी पशु औषधि विज्ञानं विभाग,
पशु चिकित्सा विज्ञानं विश्वविद्यालय एवं गो अनुसन्धान संस्थान, मथुरा – उ. प्र.