‘हे’ द्वारा हरे चारे का संरक्षण

सामान्यतया लेग्युम फसल को हरी एवं फूल निकलने की अवस्था में काटकर इस प्रकार सुखाई जाती कि उसके पोषक तत्व नष्ट ना हों, वह मुलायम रहे, उसका रंग हरा बना रहे, उसमे सडन उत्पन्न ना हो तथा नमी की मात्रा 14-15 प्रतिशत हो, हे कहलाते हैं।

‘हे’ बनाने के लाभ :

  1. हे बनाने से पशुओं को साल भर हरे चारे की आपूर्ति बनी रहती है।
  2. हे खिलाने से पशुओं को दिए जाने वाले राशन (Concentrate) में कमी की जा सकती है।
  3. हे खिलाने से पशु को साल भर पोष्टिक और संतुलित आहार की पूर्ती होती रहती है।

‘हे’ बनाने के लिए उपयुक्त फसलें :

हे बनाने के लिए साधारणतया पतले तने वाली फसलों को इस्तेमाल किया जाता है। जैसे- ल्यूसर्न, बरसीम, लोबिया, मटर, अंजन व सूडान घास।
‘हे’ बनाने के लिए आवश्यक बिंदु :

  1. हे बनाने वाली घास का तना पतला व पत्तीदार होना चाहिए।
  2. हे बनाने के लिए फसल की कटाई फूल आने से पहले कर लेनी चाहिए।
  3. घास में किसी भी प्रकार की मिटटी नहीं होनी चाहिए।
  4. हे बनने के बाद इसमें नमी की मात्रा 14-15 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। यदि नमी इससे ज्यादा होगी तो इसके संरक्षण के दौरान इसमें फफूंदी लगने के अवसर ज्यादा होंगे।
  5. हे बनाते समय ध्यान रखना चाहिए की फसल की पत्तियों का कम से कम नुकसान हो।
  6. हे को बनाते समय फसल को जल्दी से जल्दी सुखा लेना चाहिए जिससे पोषक तत्वों की हानि कम से कम हो।

‘हे’ के प्रकार :

1. फलीदार ‘हे’ (Legume Hay) :

इस प्रकार की हे में लेग्युम फसलों का हे बनाने में उपयोग करते हैं। जैसे – ल्यूसर्न, बरसीम, मटर और लोबिया।

  1. इस प्रकार के हे में प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है।
  2. इस प्रकार की हे में खनिज लवण, विटामिन की मात्रा भी अधिक होती है।
  3. इस प्रकार की हे में पोषक तत्वों की अधिक मात्रा होने के होने के कारण ये ‘हे’ सबसे अधिक सुपाच्य और पोष्टिक होती है।

2. फली रहित ‘हे’ (Non-legume Hay) :

ये ‘हे’ घास से बनायीं जाती हैं। जैसे- अंजन और सूडान, दूब घास।
जमीन पर सबसे ज्यादा घास उगने के कारण इस प्रकार की ‘हे’ बनाई जाती है। इसमें खनीज लवण, प्रोटीन और विटामिन की मात्रा भी कम होती है।

3. दाने वाली फसलों से ‘हे’ (Grain Hay) :

दाने वाली फसलों से ‘हे’ बनाने बनाने में सबसे ज्यादा जई का इस्तेमाल होता है। इसमें भी प्रोटीन, विटामिन और खनिज लवण की मात्रा कम होती है।
‘हे’ बनाने की विधियाँ :

‘हे’ बनाने की निम्न विधियाँ है :

1. जंगल ‘हे’ :
ये खुले मैदानों में सुरक्षित वन क्षेत्र में उगने वाली घास और लेग्युम का मिश्रण है। जिसे पशुओं के खाने के बाद भी वर्षा ऋतू के अंत में शेष रह जाती है। इस प्रकार का मिश्रण जब पशुओं को हरे चारे का अभाव होता है तब काटकर खिलाया जाता है, इन सुखी घासों को ही सामान्यतया जंगल ‘हे’ कहा जाता है।

2. धूप में सुखाना :
इसमें निम्न विधियों से ‘हे’ बनायीं जा सकती है :

  1. मैदान में घास बिछाकर : चारे के मिश्रण को काटने के पश्चात खुले खेत या मैदान में सूखने तक रख दिया जाता है। जल्दी सुखाने के लिए चारे को बार बार ऊपर नीचे किया जाता है । ‘हे’ बनाने के बाद हरे चारे को संग्रहित कर लिया जाता है। इसमें ‘हे’ बनाते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि जमीन समतल व एकसार हो जिससे सम्पूर्ण चारा समान रूप से सूख जाये।
  2. पूला विधि द्वारा : इस विधि में चारे को काटकर इसके पूले बना दिए जाते हैं तथा इन पूलों को किसी पेड़ की सहायता से या आपस में एक दूसरे के सहारे खड़ा कर सुखा लिया जाता है।
  3. कार्म पर तार की जाली द्वारा सुखाना : इस विधि में चारे को काटकर खेत की मेड या खेत पर बनी तारों की चारदीवारी पर उसे सूखने के लिए दाल दिया जाता है।
  4. ट्राईपोड या पिरामिड द्वारा सुखाना : ट्राईपोड को लकड़ी या लोहे से बना सकते हैं। इसमें तीन लकड़ियों या लोहे को रस्सी से बांधकर ट्राईपोड या पिरामिड बना लिया जाता है। अब इस पिरामिड पर चारे को काटकर सुखा लिया जाता है।

3. बार्न द्वारा सुखाना :
इस विधि में चारे को काटकर खेत में खलिहान (बार्न) बनाकर सुखाया जा सकता है।

4. चारे से पानी निकालना :
यह एक कृत्रिम विधि है। जब चारे में नमी की मात्रा ज्यादा होती है तो एंजाइम क्रिया के कारण चारे में पोष्टिक तत्वों की हानि अधिक होती है I इस विधि में चारे को काटकर एक लम्बे प्लेटफार्म पर डाल दिया जाता है। उस लम्बे प्लेटफार्म पर गर्म हवा से चलने वाली मशीन द्वारा चारे की सारी नमी को कुछ ही समय में सुखा दिया जाता है।

‘हे’ बनाते समय होने वाली हानियाँ : ‘हे’ बनाते समय चारे से पोष्टिक तत्वों की हानि तो निश्चित है परन्तु सावधानियां रखकर इन पोषक तत्वों की हानि को कम किया जा सकता है।

भौतिक हानियाँ :

  1. अधिक समय तक धुप में चारे को सुखाने पर उसमे उपस्थित पत्तियां नरम होने के कारण तने से अलग हो जाती है और सबसे ज्यादा पोषक तत्वों की मात्रा पत्तियों में ही उपस्थित होती है।
  2. ‘हे’ बनाते समय बरसात होने के कारण पत्तियां पानी के साथ बह जाती है।

रासायनिक विधि :

  1. जीवित पत्तियों में श्वसन के कारण कार्बोहाइड्रेट CO2 व H2O में बदल जाता है जिससे कार्बोहाइड्रेट का नुकसान हो जाता है।
  2. सूखाने की विधि से Vit-A, Vit-C पर प्रभाव पड़ता है।
  3. फसल के काटने के पश्चात् पौधे की प्रोटीन की क्रिया शीघ्र प्रारंभ होने से नाइट्रोजन की हानि होती है।
  4. केरोटीन की भी हानि होती है।

‘हे’ के लाभ :

  1. ‘हे’ साइलेज़ की तुलना में जल्दी और आसानी से संपन्न होने वाली प्रक्रिया है।
  2. पोषक तत्वों की मात्रा अधिक होने के कारण सूखे चारे में सबसे उत्तम चारे का विकल्प है।
  3. जब चारे का अभाव हो तब इसे चारे के विकल्प के रूप में वर्ष भर इस्तेमाल कर सकते हैं।
  4. ‘हे’ बनाने में खर्चा भी कम आता है।

‘हे’ की कमियां :

  1. खराब मौसम यानि बरसात और आंधी के मौसम में ‘हे’ बनाने में कठिनाई आती है।
  2. ‘हे’ साइलेज़ की अपेक्षा कम पाचक एवं पोष्टिक होता है।
  3. इसमें नमी की मात्रा कम होने के कारण यह कम सुपाच्य एवं स्वादिष्ट होता है।
  4. ‘हे’ बनाने के द्वारा पोषक तत्वों की हानि भी ज्यादा होती है।
  5. नमी की मात्रा अधिक रख जाने की स्थिति में इसमें फफूंदी लगने की सम्भावना बढ़ जाती है।

डाॅ. राजेश कुमार

स्नातकोतर पशु चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान
पी.जी.आई.वी.ई.आर., जयपुर