वर्तमान COVID-19 महामारी का जनक प्रयोगशाला में बनाया गया कोरोना वायरस नहीं है: सम्बंधित वर्तमान अनुसंधानों की व्याख्यात्मक समीक्षा

डॉ. अब्दुल समद एवं डॉ.  मुकेश कुमार श्रीवास्तव २  

  • भूतपूर्व संकाय अधिष्ठाता पशु चिकित्सा विज्ञान एवं निदेशक निर्देश महाराष्ट्र पशु और मत्स्य विज्ञान विश्वविद्यालय, नागपुर (drasamad@hotmail.com)
  • सहायक आचार्य एवं प्रभारी, पशु औषधि विज्ञानं विभाग, पंडित दीनदयाल उपाध्याय पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय एवँ गो अनुसन्धान संस्थान, मथुरा, उत्तर प्रदेश

वर्तमान में एक षड्यंत्र का सिद्धांत तेजी के साथ पनप रहा है, कि कोरोना वायरस (जिसे अब SARS-COV-2 नाम दिया गया है) जो कि वर्तमान कोरोना महामारी (जिसे अब COVID-19 नाम दिया गया है) का कारण चीन की प्रयोगशाला में बनाया गया एक वायरस है । संदिग्धता  का प्रमुख  कारण  कुछ साक्ष्य जैसे कि करोना वायरस रिसर्च प्रयोगशाला जो वुहान में स्थित SARS वायरस पर काम करती है का स्थानीय मछली बाजार के पास स्थित होना है । इसके अलावा एक अन्य सिद्धांत जो कि चर्चा में है  उसके अनुसार यह वायरस दो वायरस कोरोना और हर्पीस वायरस मिलकर  से बना है। इस सम्बन्ध में न केवल आम लोगों ने, बल्कि संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य देशों के वैज्ञानिकों ने भी इस आरोप को सच मानते हुए सबूत भी जुटाने शुरू कर दिए है (हम इसे शून्य परिकल्पना कहते हैं)। इस सन्दर्भ में आवश्यक हो गया  है कि हाल में ही हुए कोरोना  वायरस पर हुए कुछ अनुसंधानों को प्रकाश में लिया जाय।

सिडनी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एडवर्ड होम्स के नेतृत्व में वैज्ञानिकों के एक समूह, जिसमे स्क्रिप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट, ला-जोला, कैलिफ़ोर्निया से डॉ. क्रिस्टियन एंडरसन और उनके अन्य सहयोगी, न्यू ऑरलियन्स ने तुलाने विश्वविद्यालय से डॉ रॉबर्ट गैरी ने एक सहयोगी अनुसंधान कार्यक्रम शुरू किया और एक आभासी या कहे यथार्थ मंच पर प्राप्त अनुसंधान डेटा को आदान-प्रदान किया। । उनके निष्कर्षों को नेचर-मेडिसिन, लांसेट और सेल जैसी बहुत ही प्रसिद्ध और उत्कृष्ट समीक्षा  वाले शोध पत्रिकाओं में प्रकाशित किया गया है। ये सभी शोध पत्र एक सप्ताह के भीतर उच्चतम रैंकिंग वाले संदर्भित शोध पत्र बन गए । सेल जैसे उत्कृष्ट समीक्षा  वाली शोध पत्रिका  में एक पत्र  प्री-प्रेस के रूप संभवतः इन अफवाहों को दूर करने के लिए जारी किया गया है ।

अब सवाल यह है कि इस सब अनुसंधानों से  उन्होंने क्या प्रमाण अर्जित किये?  जैसा कि सर्वविदित है कि  एक नया वायरस बनने या कहे कि बनाने के दो तरीके हैं।

a) प्रकृति में जीनों की अदला-बदली, जिसका मतलब है कि आप मेरे कुछ जीन लेते हैं और मैं आपके कुछ जीन, इस स्थिति में दो नए प्रकार के उत्परिवर्ती (म्युटेंट) बन सकते है, जो बीमारी पैदा करने वाला भी हो सकता है या नहीं करने वाला भी ।

b) नए और नोवेळ अनुक्रम को सम्मिलित कर के बनाया गया नया उत्परिवर्ती वायरस।

पहले विकल्प का पता लगाने के लिए इन वैज्ञानिकों  ने (जैसा कि अब चीन, दक्षिण कोरिया और अन्य देशों के कई समूहों से साक्ष्य मिले हैं) SARS-COV-2 वायरस के जीनोम  अलग किया, ज्ञात रहे कि यह वायरस वुहान में पुष्टि  या पॉजिटिव रोगियों  लिया गया (वुहान  में कोरोना महामारी का केंद्र बिंदु या हॉट स्पॉट) इसके बाद इस जीनोमिक डेटा की तुलना कॉरोना  वायरस के पहले से ज्ञात जीनोमिक डेटा के साथ की गई।  जब बात जीनोमिक डेटा की आती है, तो काफी  अंतर्राष्ट्रीय सहयोग भी मिलता  है क्योंकि पूरी दुनिया में जीन वैज्ञानिक सुलभ जीन बैंकों के साथ जीनोम अनुक्रम की जानकारी जमा करते हैं जो किसी भी वैज्ञानिक के लिए  उपलब्ध रहती है । इन वैज्ञानिको ने  पाया कि वुहान वायरस में 50-90% समानताएं हैं (जैसे कि BAT, SARS और MERS वायरस)। आश्चर्य तब हुआ जब वुहान मछली बाजार से एक मृत पैंगोलिन से पृथक वायरस को अनुक्रमित किया गया SARS-Cov-2 और पैंगोलिन वायरस में 12 अतिरिक्त बिल्डिंग ब्लॉक (हम इसे न्यूक्लियोटाइड कहते हैं) का एक साझा क्रम है , जो 4 अमीनो एसिड को जोड़ने के लिए एक स्पाइक प्रोटीन में परिवर्तित करता है। इस अतिरिक्त प्रविष्टि  या जोड़ ने एक एंजाइम ‘फ्यूरिन’ को विशिष्ट साइट पर जोड़ने  और काटने में सक्षम बनाया, जब किसी करोना वायरस में यह साईट जुड़ जाएगी (4 अमीनो एसिड के सम्मिलन के कारण) वायरस अत्यधिक संक्रामक और संक्रामक हो जायेगा,  क्योंकि अब वायरस ACE -2 कोशिकाओं को श्वसन तंत्र  में बहुत ही कसकर बांधने में, संख्या वृद्धि करने में , वहा से मुक्त हो जाने में और अन्य कोशिकाओं से पुनः आबद्ध करने में सक्षम है । बर्ड फ्लू महामारी में भी ऐसी ही प्रविष्टि दिखी थी. और  पृथक किये गए वायरस ने इस नावेल सम्मिलन या प्रविष्टि को दिखाया ।

मानव निर्मित सिद्धांत के खिलाफ और प्राकतिक अदला-बदली सिद्धांत के पक्ष में एक और प्रमाण शर्करा- आसक्ति साइटों (सुगर बाइंडिंग) की उपस्थिति है। नोवेल वायरस में शुगर आसक्ति साइटें पाई गई हैं जो वायरस के चारों ओर म्यूकिन जैसी ढाल बनाती हैं। ऐसा कोट वायरस को प्रतिरक्षा हमले से बचाता है। कृत्रिम रूप से बिंदु-उत्परिवर्तन द्वारा न्यूक्लियोटाइड डालना आसान हो सकता है लेकिन शर्करा- आसक्ति साइटों को सम्मिलित करना संभव नहीं है nextstrain.org में एक पेपर भी प्रकाशित किया गया था, जिसमें दावा किया गया था कि SAR-Cov-2 में HIV वायरस के समान कुछ सम्मिलन थे। लेकिन, स्विटज़रलैंड में बेसल विश्वविद्यालय के आणविक महामारीविद डॉ. एम्मा होडक्रॉफ्ट ने बताया कि  यह शोध बहुत अच्छा नहीं है  क्योंकि समानता बहुत छोटी और महत्वहीन है,  जिसके  बड़ी संख्या में वायरस में आसानी से देखी  जाने की संभावना है। इस शोध पत्र पर कड़ी आलोचना होने  के बाद, इसे वापस ले लिया गया था। साथ ही इस बात का भी कोई प्रमाण नहीं है कि SARS-Cov-2 में कोई महत्वपूर्ण समानता हर्पीस वायरस से  है।

अंत में निष्कर्ष के तौर पर यह कहा जा सकता है कि , दुनिया भर के वैज्ञानिकों का एक बड़ा समूह (चीन को छोड़कर) इस बात पर अडिग है कि यह वायरस चमगादड़ और पैंगोलिन वायरस का मिश्रण हो सकता है, लेकिन प्रकृति में विकसित, संभवतः केवल एक ही प्रजाति में व्यतिक्रम या लाँघ कर  (2  प्रजाति के रूप में नहीं जैसा कि पहले माना गया था).

पैंगोलिन एक रात्रिचर स्तनधारी है, जो कि भारत, विशेषकर हिमालयी, उत्तर पूर्वी राज्यों और दक्षिण भारत में पाया जाता है । मणिपुर में मोरेह के साथ तमू में तमिल बस्तियां और तमिलनाडु में उनके रिश्तेदार, ओडिशा के बरहामपुर और अन्य जगहे इस श्रृंखला में एक महत्वपूर्ण कड़ी है। म्यांमार के रास्ते भारत से चीन तक पैंगोलिन की तस्करी की ख़बरें आई हैं, क्योंकि इसे  अपने शल्क  और मांस के लिए बहुत अधिक कीमत (औसतन यूएस $ 40,000 डॉलर) मिलती है।  ऐसा अनुमान है कि 2009 से 2017 के बीच लगभग 6000 पैंगोलिन की तस्करी की गई थी।

वैज्ञानिक समूह ने यह भी बताया कि अगर प्रकृति में ऐसा हो सकता है। हमें सतर्क रहना होगा क्योंकि यह कभी भी हो सकता है। वैज्ञानिक समूह ने इस सन्दर्भ में तत्काल कार्रवाई हेतु  दो आसान  पेशकश दी –

  1. कोई जंगली जीव (विशेष रूप से पक्षियों) को वेट मार्किट (उदहारण के लिए मछली बाजार) में अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.
  2. जीव विज्ञानियों  को अलग-अलग वन्यजीवों और पक्षियों से प्राप्त  कोरोना वायरस  पर जीनोमिक अध्ययन करना चाहिए।

साथ ही यह भी सुझाव दिया कि जीनोमिक विकास या क्रमागत अध्ययन बेहतर नियंत्रण रणनीति बनाने में मदद करेगा।