कोलीसेप्टिमिया (सेप्टिमिक कोलीबैसिलोसिस)

नवजात बछड़ों में कोलाइसेप्टिमिया को खराब प्रबंधन की बीमारी माना जा सकता है। जिसका मुख्या कारण प्रथम दूध (कोलोस्ट्रम) से मिलने वाले इम्युनोग्लोब्युलिन का पर्याप्त मात्रा में न मिल पाना होता है, इसके अलावा खराब-गुणवत्ता वाले कोलोस्ट्रम (प्रथम ब्यात वाले पशुओ), मातृत्व क्षेत्र की अस्वच्छता, बछड़ो के रहने की जगह ज्यादा भीड़भाड़ भी बीमारी को बढ़ावा देते हैं। ई. कोलाई के कारण होने वाला सेप्टीसीमिया सबसे अधिक 1 से 14 दिनों की आयु में होता है।  बीमार बछड़ों के मूत्र में ई. कोलाई मौखिक स्राव, नाक स्राव और बाद में मल में भी निकलते है। इस प्रकार संचरण साथ रखे गए बछड़ों, या अशुद्ध प्रसूति स्थानों के कारण हो सकता है।

कोलीसेप्टिमिया लक्षण (Colibacillosis in Calves)

मुख्यतः अवसाद, कमजोरी, क्षिप्रहृदयता और मध्यम निर्जलीकरण के लक्षण दिखाई देते हैं। प्रभावित बछड़े आमतौर पर 7 दिनों से कम और 24 घंटे से कम उम्र के हो सकते हैं। बुखार आमतौर पर बीमारी के स्पष्ट नैदानिक लछणों से अनुपस्थित होता है, क्योकि एंडोटॉक्सिमिया और परिणामी कम परिधीय संचरण  की वजह से अक्सर हाइपोथर्मिया या सामान्य तापक्रम ही देखने को मिलता है। लेकिन जो बीमार बछड़े गर्म दिनों पर सीधे सूर्य के प्रकाश के संपर्क में आते हैं, ऐसे बछड़ों को स्पष्ट रूप से अतिताप हो सकता है। चूसने का रिफ्लेक्स  बहुत कम या अनुपस्थित  होता है, और आँखों का श्वेतपटल स्पष्ट रूप लाल देखा जा सकता है। पेटीचियल रक्तस्राव श्लेष्म झिल्ली और छोरों पर दिखाई दे सकते हैं, विशेष रूप से कानों के कर्ण पटल पर। पैर, मुंह और कान स्पर्श करने पर ठन्डे मिलते हैं। प्रभावित बछड़े प्रगतिशील कमजोरी और सुस्ती दिखाते हैं, जो अक्सर मौत से पहले कोमा में चले जाते हैं। अक्सर दस्त होते है लेकिन अतितीव्र अवस्था में  स्पष्ट नहीं भी हो सकते है। अत्यधिक संवेदनशीलता (हायपरएसथेसिया), लेटे लेते लगातार पैरो को चलाना (पैडलिंग), सिर को ऊपर आसमान की तरफ़ रखना (ओपिस्थोटोनस) सेप्टिक मेनिन्जाइटिस के लछण हैं। जोड़ों और /या विकास प्लेटों में जीवाणु पहुचने से लंगड़ापन हो सकता है। नाल प्रदाह (ओम्फालोफ्लेबिटिस) के लक्षण भी मौजूद हो सकते हैं। पुराने मामलों में कमजोरी शरीर की खराब स्थिति, और जोड़ों में दर्द या हड्डी के दर्द के की वजह से पशु उठने से असमर्थ भी हो सकता है।

तीव्र कोलिसेप्टिसीमिया के लिए विभेदक निदान में जन्म के दौरान ऑक्सीजन की कमी (एस्फिक्सिया) या आघात, हाइपोथर्मिया और/या हाइपोग्लाइसीमिया, साल्मोनेला जीवाणु के कारण सेप्टिसीमिया और केंद्रीय तंत्रिका या हृदय प्रणाली के जन्मजात दोष शामिल हैं। माइकोप्लाज्मा के कारण पॉलीआर्थ्राइटिस ,कोलाइ  वाली सेप्टिक गठिया के लिए एक महत्वपूर्ण विभेदक निदान है, लेकिन इसे बड़े बछड़ों में देखा जा सकता है। नमक की विषाक्तता, हाइपोग्लाइसीमिया, जन्मजात न्यूरोलॉजिक विकार, दर्दनाक चोटें, और नशा (जैसे, सीसा) को मेनिन्जाइटिस माध्यमिक कोलाइसेप्टिमिया के लिए विभेदक निदान के रूप में माना जाना चाहिए।

उपचार

आघात (शॉक), लैक्टिक रक्तअम्लता (एसिडोसिस), रक्त में ग्लूकोस की कमी (हाइपोग्लाइसीमिया), और कई अंग के विकार तीव्र रोग में (परएक्यूट) में आम हैं।उपचार का प्राथमिक लक्ष्य एंडोटॉक्सिक आघात, अम्ल छार संतुलन, और विद्युतअपघट्य (इलेक्ट्रोलाइट) असामान्यताएं, प्रभावी रोगाणुरोधी चिकित्सा, और पोषण संबंधी सहायता होता हैं। अंतःशिरा संतुलित इलेक्ट्रोलाइट घोल  में डेक्सट्रोज (2.5% से 10%) और सोडियम बाइकार्बोनेट (20 से 50 मिली एक़ुइवेलेंट/ लीटर होना चाहिए, यदि प्लाज्मा बाइकार्बोनेट सांद्रता 10 मिली एक़ुइवेलेंट/ लीटर हो ) देना चाहिए। नवजात सेप्टीसीमिया का इलाज करने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एंटीमाइक्रोबायल्स जीवाणुनाशक होना चाहिए (जो ग्राम-नकारात्मक जीवाणु के लिए अच्छा कार्य कर सके) जैसे कि सीफाइटोफुर, ट्राइमेथोप्रिम-सल्फा, या एम्पीसिलीन। प्रभावी रक्त सांद्रता प्राप्त करने के लिए मांस या नस में ही देना चाहिए। अमीनोग्लाइकोसाइड्स जैसे जेंटामाइसिन या एमिकैसीन अकेले या सहक्रियात्मक रूप से अभिनय करने वाले बीटा-लैक्टम एंटीबायोटिक दवाओं (जैसे, सीफाइटोफुर, पेनिसिलिन, या एम्पीसिलीन) के साथ संयोजन में उपयोग किया जा सकता है। लेकिन निर्जलित रोगी में एमिनोग्लाइकोसाइड का का संभावित नेफ्रोटॉक्सिक प्रभाव भी ध्यान रखना चाहिए।

पोषण संबंधी सहायता आदर्श रूप से पूरे दूध या अच्छी गुणवत्ता वाले दूध प्रतिकृति (मिल्क रेप्लसेर) की छोटी मात्रा से पूरी की जा सकती है। अन्तः शिरा द्वारा आंशिक या पूर्ण पोषण मूल्यवान बछड़ों के लिए किया सकता है, विशेष रूप से समवर्ती आंत्रशोथ के साथ। शुष्क बिस्तर, अच्छा वेंटिलेशन और अच्छी नर्सिंग देखभाल चिकित्सा उपचार के लिए आवश्यक सहायक हैं।

मैनिंजाइटिस के कारण दौरे पड़ने वाले रोगियों को दौरे को नियंत्रित करने के लिए डायजेपाम की आवश्यकता हो सकती है। क्रोनिक मामलों में आमतौर पर गंभीर होते हैं क्योकि इनमे पॉलीआर्थराइटिस और दस्त के लछण होते हैं, ऐसे बछड़े अक्सर लेते हुए, कमजोर, निर्जलित और क्षीण होते है।

बचाव

  • अच्छी गुणवत्ता वाले कोलोस्ट्रम के लिए  न्यूनतम  40 और अधिकतम 90 शुष्क दिन होने चाहिए।
  • जन्म के बाद नवजात बछड़ों को जल्द से जल्द प्रसव वाले क्षेत्र से हटा दिया जाना चाहिए इससे फेकल-ओरल इनोक्यूलेशन नहीं हो पाता है।

 

 

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डॉ. मुकेश श्रीवास्तव

प्रभारी पशु औषधि विज्ञान विभाग,
पशु चिकित्सा विज्ञानं विश्वविद्यालय एवं गो अनुसन्धान संस्थान, मथुरा – उ. प्र.