भारत में 2030 तक रेबीज उन्मूलन

रेबीज भारत, ऑस्ट्रेलिया और सिंगापुर में स्थानिक है। बहरीन, जापान और इंग्लैंड जैसे देश रैबीज से मुक्त हैं। जापान पहला एशियाई देश है जिसने रेबीज को जड़ से मिटा दिया, तो भारत का क्या? क्या भारत इन भी देशों में से होगा जो रेबीज मुक्त हैं, इसका जवाब हां है, हां, भारत भी रेबीज से मुक्त तभी होगा जब डब्ल्यूएचओ, एफएओ और विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन रेबीज को मिटाने या खत्म करने का लक्ष्य निर्धारित करें?

रेबीज के कारण दुनिया भर में 60000 मौत होती हैं और भारत में प्रति वर्ष 20000 की सूचना है। वैश्विक रणनीतिक योजना 2030 तक मनुष्यों में कुत्ते से होने वाली रेबीज को समाप्त करना है।

रेबीज एक भयानक बीमारी है जिसमें हर कोई डर जाता है क्योंकि यह वायरल संक्रामक रोग है जो न्यूरोट्रोपिक वायरस के कारण होता है और इसमें विभिन्न लक्षण और घाव देखने को मिलते है, जिसके बाद पक्षाघात होता है और मृत्यु देखने को मिलती है। लोगों को लगता है कि रेबीज अपरिहार्य है लेकिन यह गलत कथन है। रेबीज से बचाव किया जा सकता है क्योंकि रेबीज वायरस को खत्म करने के लिए अत्याधुनिक वैक्सीन तकनीक के साथ दुनिया बदल रही है। रेबीज से बचाव के उपायों के रूप में दुनिया में लगभग 530 मिलियन अमेरिकी डॉलर सालाना खर्च किए जाते हैं, लेकिन दक्षिण एशियाई देशों में यह बीमारी अभी भी एक महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थय समस्या है क्योंकि रेबीज के कारण वार्षिक मृत्यु लगभग 40000-60000 है जो रेबीज के कारण दुनिया के सभी हिस्सों में होने वाली मौतें की लगभग 45 प्रतिशत हैं। भारतीय संदर्भ में, स्थिति अधिक स्पष्ट है क्योंकि मृत्यु दर बहुत अधिक है और बताया गया है कि भारत में प्रति वर्ष 36 प्रतिशत मौतें हुई हैं। 2015 में रेबीज के लिए वैश्विक गठबंधन की एक रिपोर्ट से पता चला है कि रेबीज के कारण भारत में वैश्विक मौत का तीसरा हिस्सा है।

आज तक, रेबीज से संबंधित घटनाओं में कोई गिरावट नहीं आई है और रिपोर्ट में कहा गया है कि शायद असली घटनाओं को कम करके आंका जा सकता है क्योंकि भारत में रैबीज अभी भी विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में एक उल्लेखनीय बीमारी है। यह स्थिति सामान्य रूप से निवारक उपाय के बारे में जागरूकता की कमी के कारण है, जिनमे पर्याप्त कुत्ते के टीके में कमी, अनियंत्रित कैनाइन आबादी, उचित पोस्ट एक्सपोजर, प्रोफिलैक्सिस, अनियमित एंटी-रेबीज वैक्सीन का कम ज्ञान।
भारत में लगभग 30 मिलियन आवारा कुत्ते हैं और इसकी वजह से रेबीज से होने वाली 20000 मानव मौतें बताई जाती हैं जिनमें ज्यादातर गरीब लोग और बच्चे शामिल हैं क्योंकि गरीब बच्चे आवारा कुत्तों के पास खेलने आते हैं और उनके साथ भोजन करते हैं जिसके परिणामस्वरूप उन्हें अक्सर काटने का खतरा होता है। एक अध्ययन में बताया गया है कि जागरूकता की कमी के कारण अधिकांश बच्चो के माता-पिता अक्सर उन हमलों को नजरअंदाज कर देते हैं या फिर बिना किसी चिकित्सकीय सलाह के घाव का इलाज कर देते हैं जिससे वायरस की संख्या में वृद्धि हो जाती है।

घातक स्थिति में, मिजोरम में हुई एक घटना का उल्लेख करना उचित है, जहां एक महिला ने कुत्ते के काटने की सूचना दी थी, परन्तु उस समय उसमें लक्षण नहीं दिखाई दिए लेकिन बाद में 2012 में 26 साल की उम्र में आने के बाद महिला ने रेबीज के लक्षण दिखाने शुरू कर दिए जिससे उसकी मौत हो गई।
ज्यादातर रेबीज का प्रसार मुख्य रूप से खराब टीकाकरण के कारण होता है, लोग पालतू जानवरों को प्यार और देखभाल के साथ रखते हैं लेकिन उनके एंटी-रेबीज टीकाकरण की उपेक्षा करते हैं। यदि एक बिना टीकाकरण के कुत्ते को रेबीज वायरस वाले कुत्ते द्वारा काट लिया जाता है, तो बिना टीकाकरण वाले कुत्ते को संक्रमण का खतरा हो जाता है और यदि मालिक या बच्चे इस बिना टीकाकरण वाले कुत्ते के साथ खेल रहे हैं, तो वायरस का संक्रमण हो सकता है, वायरस ज्यादातर लार से फैलता है और व्यक्ति रेबीज से संक्रमित हो सकता है और अनुपचारित लक्षण दिखा सकता है। संक्रमण के मामलों में इंसान या जानवर की मौत हो सकती है, इसलिए रेबीज को नियंत्रित करने के लिए टीकाकरण के बारे में जागरूकता और ज्ञान का प्रसार बहुत आवश्यक है।

नियंत्रण 

  • कुत्तों को प्रोफिलैक्सिस के लिए एंटी-रेबीज टीकाकरण। प्राथमिक टीकाकरण 3 महीने पर दिया जाता है और फिर 1 साल के बाद बूस्टर दिया जाना चाहिए।
  • एंटी रेबीज टीकाकरण पोस्ट एक्सपोजर 0,3,7,14,28,90 दिन
  • कुत्ते के काटने पर तुरंत अपने डॉक्टर से परामर्श करें और एंटी-रेबीज पोस्ट एक्सपोजर टीकाकरण लगवाए।

भारत को रेबीज मुक्त बनाने के उपाय 

  •  लोगों को विशेष रूप से दूरदराज के क्षेत्रों में रेबीज के अस्तित्व के बारे में जागरूक करने के लिए सार्वजनिक शिक्षा अभियान चलाने की आवश्यकता है।
  • प्राथमिक देखभाल प्रदाताओं को इंट्राडर्मल वैक्सीन सहित उचित प्रोफिलैक्सिस को प्रशिक्षित करने के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।
  • मेडिकल कॉलेजों को जानवरों के काटने के प्रबंधन के लिए पर्याप्त प्रशिक्षण और जोखिम के साथ इंटर्न प्रदान करने की आवश्यकता है।
  • आवारा कुत्तों की आबादी को कम किया जाना चाहिए।
  •  रेबीज को एक महामारी के रूप में घोषित किया जाना चाहिए और स्वास्थ्य कार्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए।
  • नियमित रूप से एंटी-रेबीज टीकाकरण पालतू जानवरों को दिया जाना चाहिए।
  • पशुचिकित्सा, मेडिकोस, नीति निर्माताओं और नागरिकों को नए समाधान के साथ इस बीमारी को रोकने के लिए मिलकर काम करना चाहिए।
  • सबकर मिलकर काम करने से भारत उन देशों में से एक होगा जो 2030 तक रेबीज से मुक्त हो जाएगा।

 


लेखक

डॉ. के. आर. शिंगल

पूर्व प्रादेशिक सह आयुक्त, पशुसंवर्धन, महाराष्ट्र सरकार
ईमेल आयडी: drkrshingal@gmail.com

अनुवादक

डाॅ. राजेश कुमार
स्नातकोतर पशु चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान
पी.जी.आई.वी.ई.आर., जयपुर