गर्भावस्था परीक्षण: फायदे, तकनीक और विधियाँ
गाय गर्भावस्था परीक्षण
सभी पशु प्रजनन उद्यमों के लिए लाभप्रदता की कुंजी उच्च प्रजनन क्षमता है जिसे साधारण भाषा में हर साल एक पशु से एक बछड़ा/बछिया लेना बोला जाता है (12 महीने का औसत ब्यात अंतराल) इसे पूरा करने के लिए आदर्श रूप से डेयरी पशुओं में 60 दिनों के प्रसवोत्तर बंध्या या अनुपजाऊ अंतराल को अनुशंसित किया जाता है। गर्भावस्था परीक्षण इस प्रजनन क्षमता की निगरानी और प्रजनन चक्र में किसी भी समस्या का जल्द पता लगाने का एक तरीका है। ऐसे मादा पशु जिनमे भ्रूण विकासशील स्थिति में हो उन्हें गर्भित कहते हैं, तथा अवस्था को गर्भधारण कहते हैं। गर्भधारण अवधि सहवास या कृत्रिम गर्भाधान से प्रसव तक की होती है। गर्भ परीक्षण का महत्व सीधा पशुपालक की आर्थिक स्थिति से जुड़ा हुआ है। यदि पशुओं का समय पर गर्भ परीक्षण हो जाये तथा यह सुनिश्चित हो जाए की पशु गर्भित है तो पशुपालक उसकी अच्छी देखभाल करता है, यदि पशु गर्भित नहीं है तो वह दो बातों पर फैसला करता है।
- पशु को अपने पास रखे या बेच दे।
- पशु के गर्भित न होने का क्या कारण है, क्या इसका उपचार संभव है या नही।
अतः पशु चिकित्सक/कृत्रिम गर्भाधान कार्मिक को बड़ी सावधानी से गर्भ परीक्षण करना चाहिए और पूरी तरह सुनिश्चित होने पर ही पशुपालक को बताएं कि उनका पशु गर्भित हैं या नहीं।
गर्भावस्था परीक्षण से लाभ
गर्भ परीक्षण करने की विधि से ज्यादा यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि यह वास्तव में गैर-गर्भधारित पशुओ की शुरुआती पहचान ही प्रजनन प्रबंधन का सबसे अनिवार्य हिस्सा है। गैर-गर्भधारित जानवरों की पहचान करने में सक्षम होने से ब्यात अंतराल को छोटा किया जा सकता है क्योकि जानकारी उपलब्ध होते ही जल्द से जल्द ऐसे पशुओ को पुनः गर्भाधान कराया जा सकता या उनका इलाज किया जा सकता है। शुरुआती गाय गर्भावस्था परीक्षण के निम्नलिखित लाभ हैं।
- कई मामलों में गर्भाशय में पल रहे गर्भस्थ शिशु की उम्र और संभावित ब्याने की तारीख का अनुमान मलाशय परिस्पर्शन के दौरान लगाया जा सकता है।
- जो पशु जल्दी ही गर्भ धारण किये है उन्हें जल्द ही ब्याने वाले अन्य पशुओ से अलग किया जा सकता है।
- गर्भित पशु का पता लग जाने से उसके लिए अतरिक्त आहार, प्रबंधन आदि की व्यवस्था करने में आसानी हो जाती है।
- पशु समूह के आकार को कम करने (जो पशु किन्ही कारणों से प्रजनन के लिए योग्य नहीं रह गए है, उन्हें सक्रिय प्रजनन से हटाकर), यह एक उपयोगी आधार प्रदान कर सकता है।
- गायों में बांझपन के लिए जिम्मेदार विभिन्न असामान्यताओं को भी पहचाना जा सकता है, जिनसे से सामान्यतः अंडाशय की पुटिका और गर्भाशय संक्रमण के ज्यादातर मामले होते हैं।
- मलाशय परिस्पर्शन के दौरान कभी-कभी फ्रीमार्टिन बचिया और प्रजनन अंगों की अन्य असामान्यताओं का भी पता लगाया जा सकता है। पूरे पशु समूह को प्रभावित करने वाले प्रजनन रोगों और प्रबंधन की समस्याओं को बहुत पहले पहचाना जा सकता है । पूरे झुंड में खराब प्रजनन प्रदर्शन किसी संक्रामक रोग या अपर्याप्त पोषण के कारण हो सकता है।
गर्भावस्था परीक्षण आपको सक्षम बनाता है कि :
- ख़ाली पशुओ में गर्मी का पता लगाने के अतिरिक्त प्रयासों पर ध्यान दें।
- ख़ाली पशुओ में समक्रमिक गर्मी से प्रेरित करना
- आने वाले 6 महीनों के लिए अधिक सटीक रूप से दूध देने के झुंड के आकार का अनुमान लगाना।
- प्राकृतिक सहवास और कृत्रिम गर्भाधान से हुए गर्भधारण का विभेद करना।
- गर्भधारण दर के आधार पर उस सांड की पुष्टि करना जिसका वीर्य उपयोग किया गया है ।
- गैर-गर्भवती पशुओ को आत्मविश्वास से फिर से गर्भधारण कराना या फिर उन्हें सक्रिय प्रजनन से हटाना।
- अगर गायों को बेचना है तो अनुमानित ब्याने की तारीखों का पता लगाना।
- अनुमानित ब्याने की तारीख का पता चल जाने से नियत समय से पहले आत्मविश्वास से गर्भावस्था के अंतिम दो माह में पशुओं को दूध लेने से हटा देना चाहिए। इससे दुग्धकाल लम्बा होगा और अधिक दूध मिलता है।
- बछड़े के सांड का पता चल जाने से पशु समूह आनुवांशिकी को प्रबंधित करने और अंतःप्रजनन से बचने में मदद करता है।
गर्भपरीक्षण की विधियां
गर्भ परीक्षण के तरीकों की एक विस्तृत विविधता है और प्रत्येक के अपने फायदे और नुकसान हैं। इनका तुलनात्मक अध्यन टेबल-१ में दिया गया है। मलाशय परिस्पर्शन गर्भावस्था के शुरुआती निदान के लिए पसंद का तरीका है। उम्र बढ़ने और भ्रूण की लिंग जांच के लिए अल्ट्रासाउंड परीक्षा बेहतर है।
- गर्भधारण के बाह्य लछण
- मलाशय परिस्पतर्शन
- प्रयोगशाला जाँच (प्रोजेस्ट्रोन हॉर्मोन की माप और अल्ट्रासाउंड विधि द्वारा परीक्षण)
1. गर्भधारण के बाह्य लक्षण (मदचक्र का बंद हो जाना)
पशु का गर्मी में न लौटना आमतौर पर गर्भावस्था के निदान की एक सस्ती और सरल विधि के रूप में उपयोग की जाती है जिसमें पशु चिकित्सक की आवश्यकता नहीं होती है। हालांकि गर्मी में गैर-वापसी का एक बड़ा नुकसान है कि गलत तरीके से बड़ी संख्या में मवेशियों को गर्भवती होने के रूप में वर्गीकृत किया जाता है जबकि वे गर्भित नहीं होते हैं। गर्मी में गैर-वापसी विधि का उपयोग करते हुए लगभग 30% खाली (गर्भित नहीं) पशुओ को गर्भाधान के 21 दिन गर्भित मान लिया जाता है। यदि गर्भाधान दर 50% से कम है, जो कई बार होती है, तो यह अशुद्धि और भी अधिक हो सकती है। कई बार इसमें भी धोखा हो जाता है अर्थात पशु गर्भित नहीं होते हुए भी गर्मी में नहीं आता है जैसे कि विभिन्न हार्मोन के अक्रियाशील होने के कारण पशु गर्मी में नहीं आता, इसके अतरिक्त कई बार गर्भित होते हुए भी पशु गर्मी के लक्षण दिखाता है। इसलिए गैर-वापसी का पता लगाना प्रजनन प्रबंधन का एक उपयोगी हिस्सा है, लेकिन इसे अतिरिक्त उपायों द्वारा समर्थित करने की आवश्यकता है।
टेबल-१ प्रारंभिक गर्भावस्था निदान तकनीकों की तुलना
तकनीक | प्रारंभिक परीक्षण
|
सकारात्मक परिणाम में
निदान सटीकता |
नकारात्मक परिणाम में
निदान सटीकता |
मलाशय परिस्पर्शन | थोड़ी संभावना | बहुत अच्छी | सर्वोत्तम |
अल्ट्रासाउंड विधि | अधिक संभावना | सर्वोत्तम | सर्वोत्तम |
दूध में प्रोजेस्टेरोन जाँच | सर्वाधिक संभावना | अच्छी | बहुत अच्छी |
3. मलाशय परिस्पर्शन
विश्वसनीयता, सरलता व कम खर्च के आधार पर यह सबसे अच्छी विधि मानी जाती हैं। इस विधि में एक माह के गर्भ से लेकर अंत तक की जांच (अनुभव के आधार पर) के साथ साथ प्रजनन अंगों (अंडाशय, गर्भाशय, योनि, गर्भाशय ग्रीवा आदि) के आकार में बदलाव की जांच की भी जाती है, तथा इनमें किसी असामान्य स्थिति का भी पता लगाया जा सकता है। इस विधि को जांच के लिए उपयोग करने से पहले पशु चिकित्सक/कृत्रिम गर्भाधान कार्मिक को मादा पशुओं के प्रजनन अंगों की सामान्य संरचना (आकार, आकृति, शरीर में स्तिथि) और कार्य की अच्छी जानकारी होना अत्यंत आवश्यक है। यह विधि खाली मवेशियों के शुरुआती उपचार को शुरू करने के लिए तत्काल परिणाम देती है, लेकिन सटीकता पशु चिकित्सक/कृत्रिम गर्भाधान कार्मिक के अनुभव पर निर्भर करती है। यह परीक्षण आमतौर पर कृत्रिम गर्भाधान के 35 और 65 दिनों के बाद किया जाता है। इस पद्धति का उपयोग करते हुए, पशु चिकित्सक गर्भवती गायों को गर्भाधान के छह सप्ताह बाद पहचान सकते हैं।
प्रारंभिक गर्भावस्था निदान (1-3 महीने)– निम्नलिखित के संयोजन के आधार पर किया जाता है :
- गर्भाशय के हॉर्न की आकर विषमता
- गर्भवती हॉर्न के तान/ शक्तिप्रदता में कमी
- गर्भवती हॉर्न में उतार-चढ़ाव (फिसलने) वाली सामग्री
- गर्भवती सींग के समान अंडाशय पर एक महसूस होने वाला प्रतिस्पर्शी कॉर्पस ल्यूटियम
- एक एमनियोटिक पुटिका की मौजूदगी।
बाद की गर्भावस्था में निदान (> 3 महीने)
- गर्भाशय ग्रीवा पैल्विक रिम के पूर्व में स्थित है, और गर्भाशय को नहीं खीचा जा सकता है
- गर्भाशय नरम और शिथिल होता है
- प्लेसेंटोम्स और कभी-कभी भ्रूण भी महसूस किया जा सकता हैं
- माध्यिका गर्भाशय धमनी (मीडियन यूटरायन आरटरी) व्यास में बढ़ जाती है और फ्रीमेटस का पता लगाया जा सकता है।
विधि
- अरगड़ा में लगाकर पशु को नियंत्रित करें
- हाथों में पूरे हाथ के दस्ताने, पैरों में गम बूट व एप्रेन पहने (चिकित्सक के नाखून किसी भी स्थिति में बढ़े हुए नहीं होने चाहिए)
- दस्तानो पर स्नेहक लगावे ताकि मलाशय की श्लेष्मा झिल्ली को नुकसान न पहुंचे
- अंगुलियों को आगे से मिलाकर शंकु बनाकर पशु के मलाशय में हाथ को हल्के दबाव से डालें
- पशु गोबर अपने आप कर रहा हो तो उसे करने दें अन्यथा गोबर मुठ्ठी को दबाते हुए बाहर निकाले ध्यान रखें मलाशय से हाथ बार-बार बाहर नहीं निकाले अन्यथा मलाशय में हवा भर जाएगी
- पशु जोर लगाता हो तो हाथ पर दबाव कम कर दें अन्यथा रक्त स्त्राव हो जाएगा या मलाशय फट भी सकता है
- अब प्रजनन अंगों की जांच आरंभ करें
गर्भाशय ग्रीवा- पेल्विक ब्रिम तो स्पर्श करते हुए चारो ओर हाथ घुमावे , वही पर एक नली में छोटी सी गांठ महसूस होगी, यही गर्भाशय ग्रीवा होती है (बछिया में गुदा की बाहरी छेद से लगभग 25 सेंटीमीटर व गाय में 35 cm. से आगे होती हैं)। इसका कडापन, मोटाई, आकार इत्यादि पशु की नस्ल ,उम्र और ब्यात की संख्या अधिक पर निर्भर करता है। अगर्भित पशु में इसकी लंबाई 10 सेंटीमीटर और चौड़ाई 3-4 सेंटीमीटर होती है।
गर्भाशय- यहाँ पर देखने योग्य बातो में गर्भाशय की स्थिति, उसके दोनों हॉर्न में अंतर, आकार में वृद्धि, जिस भाग में गर्भ हो उसकी दीवार का पतली होना, गर्भ के शुरुआत में भ्रूण झिल्ली का अंगूठे व अंगूली के बीच में फिसलन का महसूस होना, कोटाईलिडन का महसूस होना, माध्यिका गर्भाशय धमनी का अधिक मोटा होना तथा उसमें धड़कन महसूस करना।
- दो माह की गर्भावस्था में भ्रूण का आकार 4-5 से.मी होता है तथा गर्भाशय हार्न में फिसलन का आभास मिलता है। तीन से चाह माह में गर्भ धारण करने वाले हार्न का आकार बढ़ जाने का आभास मिलता है जिसकी तुलना खाली हार्न से की जा सकती है। गर्भ के 90 दिन पश्चात् गर्भाशय के आकार में काफी वृद्धि हो जाती है जिसमें अंगुलियों से थपथपाने पर तैरते हुए भ्रूण का आभास किया जा सकता है। चौथे माह के प्रारंभिक दिनों में विकसित हो रहे भ्रूण पत्रों का अनुभव होने लगता है जोकि माह के अंत में काफी बड़े हो जाते है। इस अवधि में माध्यिका गर्भाशय धमनी का विकास भी हो जाता है जिसको अंगूठे व अंगुली से स्पर्श करने पर नाड़ी चलने का आभास होता है। पांच माह से अधिक के गर्भ की जांच में यह ध्यान रखें कि पांचवें माह के दौरान गर्भाशय नीचे बैठ जाता है जिसका आभास थोड़ा कठिनाई व अनुभव आधारित है। साढ़े छह माह के गर्भ का निदान गर्भाश्य के आकार, श्रुणपत्रों के स्पर्श, रक्तवाहिनी की नाड़ी गति तथा गर्भाशय मुख तक हुए खिंचाव के साथ-साथ भ्रूण के अंगों के स्पर्श से किया जा सकता है। इस जांच के दौरान गर्भाशय में रूग्णताजन्य परिवर्तनों के साथ विभेदात्मक बिंदुओं को ध्यान में रखकर गर्भ निदान किया जाना चाहिए। पक्युक्त गर्भाश्य होने पर गर्भाशय के दौन हार्न |सहित गर्भाशय के आकार में समान वृद्धि होती है, उसमें भ्रूणपत्र नहीं होते जबकि गर्भ में एक ही हार्न का विकास होता है तथा भ्रूणपत्र पाए जाते है। पीवयुक्त गर्भाशय में पीव की उपस्थिति योनि मुख पर भी देखी जा सकती है।
टेबल 2 – मलाशय परिस्पर्शन द्वारा गर्भावस्था के सकारात्मक संकेत
गर्भावस्था का चरण | मेमब्रेन स्लिप | एमनियोटिक पुटिका | भ्रूण | प्लासेन्टोम | स्पृश्यकंप (माध्यिका गर्भाशय धमनी) |
३0 दिन | होगा | मिलेगी | |||
45 दिन | होगा | मिलेगी | |||
६० दिन | होगा | मिलेगी | |||
७५ दिन | होगा | मिलेगी | मिलेगा | ||
९० दिन | होगा | मिलेगा | मिलेगा | मिलेगा | |
१०५ दिन | मिलेगा | मिलेगा | मिलेगा | ||
4 महीने | मिलेगा | मिलेगा | मिलेगा | ||
5 महीने | मिलेगा | मिलेगा | मिलेगा | ||
6 महीने | मिलेगा | मिलेगा | मिलेगा | ||
7 महीने | मिलेगा | मिलेगा | मिलेगा |
मलाशय परिस्पर्शन में सामान्य त्रुटियों
- गर्भाशय को पीछे खीचने में विफलता
- असामान्य गर्भाशय ( गर्भाशय में सोथ/प्रदाह या मवाद)
- गलत गर्भाधान की तिथि।
- मवेशियों में गर्भावस्था के निदान के लिए एक सुरक्षित तरीका माना जाता है। हालांकि, एम्नियोटिक पुटिका के शुरुआती या अनुचित तालमेल भ्रूण को नुकसान पहुंचा सकते हैं और भ्रूण की मृत्यु का कारण बन सकते हैं।
३- प्रयोगशाला जांच विधियां
इन विधियों में अल्ट्रासोनिक उपकरण, हारमोन की जाँच प्रमुख प्रयोगशाला विधियां हैं। इनमें से कुछ उपयोगी विधियों का वर्णन निम्नानुसार है।
- प्रोजेस्टेरोन हार्मोन माप
गर्भाधान के बाद 18 और 24 दिनों के बीच एक कार्यात्मक कॉर्पस ल्यूटियम द्वारा स्रावित प्रोजेस्टेरोन गर्भावस्था का प्रारंभिक संकेत है। इसकी जाँच दूध या प्लाज्मा में की जा सकती है। जाँच का सबसे अच्छा समय गर्भाधान के 24 दिनों के बाद होता है, इससे लंबे समय तक ओस्ट्रस अंतराल की संभावना समाप्त हो जाती है जिसके परिणामस्वरूप झूठी सकारात्मकता हो सकती है। ढूध प्रोजेस्टेरोन परीक्षण की संवेदनशीलता (यानी गर्भावस्था का पता लगाने में सटीकता) एक शोध में लगभग 93 % और विशिष्टता (यानी गैर-गर्भावस्था का पता लगाने में सटीकता) केवल 39.3% पाई गयी है । इस परीक्षण द्वारा बड़ी संख्या में खाली पशु को गर्भित माना जा सकता है।
हार्मोन माप में त्रुटियों के सामान्य कारण
- गर्भाशय सोथ और मवाद / स्थायी कॉर्पस ल्यूटियम
- मद अंतराल का छोटा होना
- सिस्टिक डिम्बग्रंथि रोग (ल्यूटियल सिस्ट)
- नमूने और परीक्षण किट की गलत प्रयोग और रख रखाव
ब) अल्ट्रासोनिक उपकरण का प्रयोग
यह विधि भ्रूण के लिए पूरी तरह सुरक्षित होती हैं तथा 30-50 दिन की गर्भावस्था का 90 प्रतिशत सही-सही निदान किया जा सकता है। इस विधि में मादा के मलाशय में उपकरण डालकर भ्रूण की हृदयगति, नाड़ी व एकत्रित द्रव से उत्पन्न परिवर्तित तरंगों की आवृत्ति के आधार पर निदान किया जा सकता है। उम्र बढ़ने और भ्रूण की लिंग जांच के लिए अल्ट्रासाउंड परीक्षा बेहतर है। इस कार्य हेतु प्रशिक्षित तकनीशियन की आवश्यकता होती है। वास्तविक समय (बी-मोड) अल्ट्रासाउंड गर्भावस्था के 26 दिन की शुरुआत में निदान करने का एक विश्वसनीय और अपेक्षाकृत सरल तरीका है। इस विधि की सटीकता 99% से अधिक तक हो सकती है, इससे अतरिक्त प्रजनन समस्याओं को तेजी से पहचाना जा सकता है। अल्ट्रासाउंड परीक्षण को आयोजित करने की गति को जो दो कारक प्रभावित करते हैं वो है प्रचालक की प्रवीणता और उपलब्धता और पशुओं का संयम। जब दोनों कारकों को अनुकूलित किया जाता है, तो अल्ट्रासोनोग्राफी से बहुत अच्छे परिणाम मिलते है।
प्रारंभिक गर्भावस्था निदान और भ्रूण की हानि
मलाशय परिस्पणर्शन की तुलना में अल्ट्रासाउंड से पहले गर्भावस्था का पता लगाया जा सकता है। इस प्रकार प्रारंभिक भ्रूण हानि का पता लगाने की दर भी अधिक है। कृत्रिम गर्भाधान के 28 दिनों के बाद सकारात्मक भ्रूण परीक्षण के बाद जब पुनः कृत्रिम गर्भाधान के 56 दिनों बाद परीक्षण किया जाता तो 10 से 16% भ्रूण के नुकसान का अनुभव होता है। इसलिए 28 दिनों के बाद अल्ट्रासाउंड का उपयोग करके गर्भित पशु को बाद में 60 दिनों के बाद पुनः जाँच किया जाना चाहिए।
Read: लम्पी स्किन डिसीज (त्वचा में गांठ का रोग/लम्पी त्वचा रोग)
डॉ. मुकेश श्रीवास्तव
प्रभारी पशु औषधि विज्ञान विभाग,
पशु चिकित्सा विज्ञानं विश्वविद्यालय एवं गो अनुसन्धान संस्थान, मथुरा – उ. प्र.